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परिशिष्ट १
गुणकारयाइ धणियं, धिइरज्जुनियंतियाई तुह जीव ! | निययाइ इंदियाइं, वल्लिनिउत्ता तुरंग व्व॥४४७॥ मणवयणकायजोगा, सुनियत्ता ते वि गुणकरा होंति। अनिउत्ता उण भंजंति मत्तकारिणो व्व सीलवणं॥४४८॥ जह जह दोसोवरमो, जह जह विसएसु होइ वेरग्गं। तह तह विन्नायव्वं, आसन्नं से य परमपयं ॥ ४४९॥ एत्थ य विजयनरिंदो, चिलायपुत्तो य तक्खणं चेव। संवरियासवदारत्तणम्मि जाणेज्ज दिट्ठता ॥ ४५०॥ कणगावलि-रयणावलि-मुत्तावलि-सीहकीलियप्पमुहो। होइ तवो निज्जरणं, चिरसंचियपावकम्माणं ॥ ४५१॥ जह जह दढप्पइन्नो, वेरग्गगओ तवं कुणइ जीवो। तह तह असुहं कम्मं, झिज्जइ सीयं व सूरहयं॥४५२॥ नाणपवणेण सहिओ, सीलुज्जलिओ तवोमओ अग्गी। दवहुयवहो व्व संसारविडविमूलाई निद्दहइ॥४५३॥ दासोऽहं भिच्चोऽहं, पणओऽहं ताण साहुसुहडाणं । तवतिक्खखग्गदंडेण सूडियं जेहि मोहबलं॥४५४॥ मइलम्मि जीवभवणे, विइन्ननिब्भिच्चसंजमकवाडे । दाउं नाणपईवं, तवेण अवणेसु कम्ममलं॥४५५॥ तवहुयवहम्मि खिविऊण जेहि कणगं व सोहिओ अप्पा। ते अइमुत्तयकुरुदत्तपमुहमुणिणो नम॑सामि॥४५६॥ धन्ना कलत्तनियलाइ भंजिउं पवरसत्तसंजुत्ता। वारीओ व्व गयवरा, घरवासाओ विणिक्खंता॥४५७॥ धन्ना घरचारयबंधणाओ मुक्का चरंति निस्संगा। जिणदेसियं चरित्तं, सहावसुद्धेण भावेणं॥४५८॥ धन्ना जिणवयणाई, सुणंति धन्ना कुणंति निसुयाइं। धन्ना पारद्धं ववसिऊण मुणिणो गया सिद्धिं ॥ ४५९॥ दुक्करमेएहि कयं, जेहि समत्थेहि जोव्वणत्थेहिं। भग्गं इंदियसेन्नं, धिइपायारं विलग्गेहिं॥४६०॥
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