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________________ लोकतीन सुख दुःख को वर्णन जानिए। मोक्ष हेतु है लोक विधि यह मानिए।। उपाध्याय परमेष्ठि गुरु यह गावते। लेकर वसु विधि द्रव्य सु पूज रचावते।। ॐ ह्रीं श्री अरहन्त देव कथित निर्वाणपदसुख हेतु भूतं सार्द्ध द्वादश कोटि 125000000 पद प्रमाण लोकबिन्दुसार पूर्वस्य ज्ञाता उपाध्याय देवेभ्यः पूर्णाध्यं निर्वपामीति स्वाहा।।25। दोहा ग्यारह अंग विशाल है चौदह पूरब जान। इनके ज्ञानी है सही पाठक गुरु महान।। ॐ ह्रीं श्री एकादशांगचर्तुदश पूर्वाणां ज्ञाता उपाध्याय देवेभ्यः पूर्णाध्यं निर्वपामीति स्वाहा।।26॥ ऊँ ह्रीं श्री उपाध्याय परमेष्ठि देवेभ्यो नमः स्वाहा। (यह मन्त्र 9 जाप करें) जयमाला -दोहा पाठक परमेष्ठि महा, भव भव में सुखदाय। तिनके गुण की मालिका भवि जन कंठ धराय।। पद्धडी जय पाठक हो परमेष्ठि आप, हम ध्यावें भक्ति मिटत ताप। जय नगन दिगम्बर आप राय, गुण-गावे मुनिवर मुक्ति पाय।।1।। जय ध्यानधरा हो आत्म सार, जिससे मिटता भव दुख अपार। जय मिथ्या तम नाशक दिनेश, सिर नावें सरपति नर खगेश।।2।। जय आरौिद्र का कर निकार, धर धर्म शुक्ल आतम विचार। 993
SR No.009254
Book TitleVidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZZZ Unknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1409
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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