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________________ श्री निर्वाण विधान (कविवर जगतराम जी कृत ) वृहत् श्री वर्धमान निर्वाण पूजा दोहा त्रिशला सिद्धारथ तनुज, नाथवंश वर पाय । महावीर जिन चरणयुग, मोकों होहु सहाय।।1।। महावीर ने जा समै, गमन कियो शिवखेत । सोई समय विचारकें, पूजें सुधी स्वहेत ॥2॥ ओं ह्रीं श्री महावीरातिवीरसन्मतिवर्धमानादिकानेकनामसंयुक्त भगवज्जिनेन्द्र ! अत्रावतर अवतर सम्वौषट्। अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः । अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् सन्निधकरणम्। (चौपाई) मंगल निर्वाणक, महावीर, प्रात समै पूजो भवि धीर। दस अतिशय जनमत जिनपाय, केवलज्ञान माहिं दसगाय ।। तिनि जिनवर प्रति चरनन ओर, वे जलधार जुगल कर जोर। मंगल निर्वाणक महावीर, प्रातः समय पूजो भविधीर ॥ ऊँ ह्रीं श्री निर्वाणकल्याणप्राप्ताय श्री महावीरजिनेन्द्राय जलम् निर्वपामीति स्वाहा। जिनके कृ 'चौदह सार, ये अतिशय चौंतीस चितार। तिन जिनवर प्रति पूजनधारि, भ्रमरलुब्ध वरचन्दन गार।। मंगल निर्वाणक महावीर, प्रातः समय पूजो भविधीर।। ऊँ ह्रीं श्री निर्वाणकल्याणप्राप्ताय श्री महावीरजिनेन्द्राय चन्दनम् निर्वपामीति स्वाहा। 99
SR No.009254
Book TitleVidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZZZ Unknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1409
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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