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________________ अथाष्टकं-नन्दीश्वर पूजन (चाल) शुचि निर्मल जल भंगार भरकर मैं लायो। तुम चरणन दे हम धार जन्म मरण ढायो।। श्री आचारज पद सार मन वच तन ध्यावें। हम उतरे भवदधि पार याते गुणगावें।। ऊँ ह्रीं षट्-त्रिंशद गुणोपेत श्री आचार्य परमेष्ठिदेवेभ्यो जन्मजरामृत्यु विनाशनाय जलम् निर्वपामीति स्वाहा। गोशीर सुगन्धिर सार कुं कुं घिस लावें। प्रभु भव आताप निवार मन में हर्षावें।। श्री आचारज पद सार मन वच तन ध्यावें। हम उतरे भवदधि पार याते गुणगावें।। ऊँ ह्रीं षट्-त्रिंशद् गुणोपेत श्री आचार्य परमेष्ठिदेवेभ्यः संसारताप विनाशनाय चंदनं निर्वपामीति स्वाहा। ले चन्द्र किरण समश्वेत अक्षय धोय धरे। हम अक्षय निधि के हेत पदमें पुंज करे।। श्री आचारज पद सार मन वच तन ध्यावें। हम उतरे भवदधि पार याते गुणगावें।। ऊँ ह्रीं षट-त्रिंशद गुणोपेत श्री आचार्य परमेष्ठिभ्यो अक्षय पद प्राप्तये अक्षतं निर्वपामीति स्वाहा। ले करके बहु विधि फूल, डाली भर लाये। प्रभु हरो काम तिरसूल भवभव दुख पाये।। श्री आचारज पद सार मन वच तन ध्यावें। हम उतरे भवदधि पार याते गुणगावें।। ऊँ ह्रीं षट्-त्रिंशद् गुणोपेत श्री आचार्य परमेष्ठिदेवेभ्यः काम बाणं विनाशनाय पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा। ले व्यंजन नाना भांति मनहर सुखदाई। तुम भेंट धरे तज आदि मन में हर्षाई।। श्री आचारज पद सार मन वच तन ध्यावें। हम उतरे भवदधि पार याते गुणगावें।। ऊँ ह्रीं षट्-त्रिंशद गुणोपेत श्री आचार्य परमेष्ठिदेवेभ्यो क्षुधा रोग विनाशनाय नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा। 972
SR No.009254
Book TitleVidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZZZ Unknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1409
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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