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________________ जयमाल शान्तिनाथ भगवान के, गुण हैं अपरम्पार। निराधार संसार में, हैं सबके आधार।। पंचम श्री चक्रीश हैं, द्वादशवें रतिनाथ। षोडशवें तीर्थेश को, सदा नवाऊं माथ।। जय शान्तिप्रभो चिद्रूपराज, जगजलनिधि में अद्भुत जहाज। जय कर्मविनाशक शान्तिनाथ, जय विघ्नविनाशक शान्तिनाथ।। गुणवारिधि जय हे शान्तिनाथ, जय मुक्तिवधू के प्राणनाथ। जय आत्महितंकर शान्तिनाथ, जय कामविनाशक शान्तिनाथ।। जय पाप क्षयंकर शान्तिनाथ, भुवनत्रय-कीर्तित शान्तिनाथ। जय सम्यक्दर्शन हेतु नाथ, शिवमार्ग-विधायक शान्तिनाथ। जय भवगृह-अर्गल शान्तिनाथ, भवदुख-विध्वंशक शान्तिनाथ। जय मातृ शुभे जय शान्तिनाथ, त्रिभुवन त्राता पितु शान्तिनाथ।। जय शान्तिनाथ शिवनाथ प्रभो! जय हित-सन्देशक नाथ विभो। जित जन्म जरा औ मृत्यु जयी, जय रोग-शोक-हर कर्मजयी।। शिवसुख के साधन शान्तिनाथ, भवभय के हारी शान्तिनाथ। जय मानवली के मदमर्दक, जय शान्तिनाथ गुणगुणवर्धक। तस्करकृतदुःख-विनाशक हे ! भय भूत पिशाच विदारक हे। नवग्रह कृत बाधा दूर करो, व्यालादि विपति चकचूर करो। जय भव्य-सरोज-दिवाकर हो, जय शिवसुख-पद्म-प्रभाकर हो।। ओं ह्रीं जगच्छांतिकराय श्री शान्तिनाथाय नमः जयमाला पूर्णायँ निर्वपामीति स्वाहा। 97)
SR No.009254
Book TitleVidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZZZ Unknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1409
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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