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________________ बहु धूप दशांगी है बहु चंगी बैसांदर मैं हम खेवें। हम कर्म उडावे शिवसुख पावे जिनगुण गावे पद सेवे।। जय सिद्ध महन्ता शिव तिय कन्ता पूजे सन्ता भगवन्ता। मैं गाऊं ध्याऊं कर्म नशाऊं शिव पद पाऊं हुलसन्ता।। ॐ ह्रीं णमो सिद्धाणं श्री सिद्ध परमेष्ठिभ्यो अष्टकर्म विनाशनाय धूपं निर्वपामीति स्वाहा। नारिंग सुपारी दाडिम प्यारी फल अति भारी थाल भरा। जिन चरण चढ़ाउं शिव पद पाऊं शीस नवाऊं सिद्धवरा।। जय सिद्ध महन्ता शिव तिय कन्ता पूजे सन्ता भगवन्ता। मैं गाऊं ध्याऊं कर्म नशाऊं शिव पद पाऊं हुलसन्ता।। ऊँ ह्रीं णमो सिद्धाणं श्री सिद्ध परमेष्ठिभ्योः मोक्षफल प्राप्तये फलं निर्वपामीति स्वाहा। ले दव्य समारा अष्ट प्रकारा हर्ष बढ़ाकर ल्यावत है। जिन चरण चढ़ावे मंगल गावे सिद्ध महापद पावत है।। जय सिद्ध महन्ता शिव तिय कन्ता पूजे सन्ता भगवन्ता। मैं गाऊं ध्याऊं कर्म नशाऊं शिव पद पाऊं हुलसन्ता।। ऊँ ह्रीं णमो सिद्धाणं श्री सिद्ध परमेष्ठिभ्यो अनध्य पद प्राप्तये अध्यं निर्वपामीति स्वाहा। प्रत्येक अध्यं (गीता) ये पंच ज्ञाना वर्णीघति ज्ञान केवल पाइया। लोक त्रय का प्रगट देखे निज स्वरूप लखाइया।। लोकाग्र राजे निज सु साजे गुण सु वसु तुम पाइया। हम नमन करके पद यजे अति मोद मनसु बढ़ाइया।। ऊँ ह्रीं पंच प्रकार ज्ञानावर्णी कर्म विनाशक सिद्ध परमेष्ठिभ्यो अध्यं निर्वपामीति स्वाहा।।1।। 967
SR No.009254
Book TitleVidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZZZ Unknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1409
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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