SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 965
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्री सिद्ध पूजा अडिल्ल अर्ध्व लोक के अन्त बात मे जानिए। ज्ञान शरीरि कर्म रहित पहिचानिए। अष्ट गुणो को धार निकल जिन आप ही। करूं प्रभु आव्हान मिटे सन्तान ही।। ॐ ह्रीं णमो सिद्धाणं श्री परमेष्ठिन् अत्रावतरावतर संवौषट् आह्वाननम्। ऊँ ह्रीं णमो सिद्धाणं श्री परमेष्ठिन् अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः स्थापनम्। ऊँ ह्रीं णमो सिद्धाणं श्री परमेष्ठिन् अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् सन्निधापनम्। अथाष्टक (त्रिभंगी) गंगा जल लाया धार चढ़ाया अति हुलासाया सिद्ध महा। त्रय रोग नशावे भक्ति बढ़ावे होवे सक्ख अनन्त अहा।। जय सिद्ध महन्ता शिव तिय कन्ता पूजे सन्ता भगवन्ता। मैं गाऊं ध्याऊं कर्म नशाऊं शिव पद पाऊं हुलसन्ता।। ॐ ह्रीं णमो सिद्धाणं श्री सिद्ध परमेष्ठिभ्यो जन्मजरामृत्यु विनाशनाय जलम् निर्वपामीति स्वाहा। शुभ केशर चन्दन दाह निकन्दन भवभय भंजन शुद्ध अहो। हूं चरण चढ़ाया ताप नशाया सुख उपजाया नष्ट न हो।। जय सिद्ध महन्ता शिव तिय कन्ता पूजे सन्ता भगवन्ता। मैं गाऊं ध्याऊं कर्म नशाऊं शिव पद पाऊं हुलसन्ता।। ऊँ ह्रीं णमो सिद्धाणं श्री सिद्ध परमेष्ठिभ्यः संसारताप विनाशनाय चंदनं निर्वपामीति स्वाहा। 965
SR No.009254
Book TitleVidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZZZ Unknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1409
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy