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________________ सुख अनन्तानन्त सुख पाइया, ध्यान बल जिन कर्म खिपाइया । सो यजूं सर्वज्ञ जिनेश को अर्घ दे पद पाऊं मोक्ष को।। ऊँ ह्रीं अनन्त सुख सहित अरहन्त देवेभ्योऽघ्यं निर्वपामीति स्वाहा॥45॥ अनन्त वीर्यत्व प्रकाशिया, अन्तराय सुभट अरि नाशिया। सो यजूं सर्वज्ञ जिनेश को अर्घ दे पद पाऊं मोक्ष को।। ॐ ह्रीं अनन्त वीर्य सहित अरहन्त देवेभ्योऽघ्यं निर्वपामीति स्वाहा।। 46॥ गीता दृग अनन्त ज्ञान अरु सुख वीर्य गणधर ने कहै। होत है सर्वज्ञ प्रभु के मोक्ष नारी वे लहै ।। पूज हूं उर भक्ति धरकर पाप मेरे नाश हो । अन्त शिव नारी वरूं मैं ज्ञान भानु प्रकाश हो || ॐ ह्रीं अनन्त चतुष्टय सहित अरहन्त देवेभ्योपूर्णायं निर्वपामीति स्वाहा।। जन्म दश दश ज्ञान केवल देव कृत चौदह भने । प्रातिहार्य है चतुष्टय गुण छियालिस शुभबने || ये है सु अतिशय जगत गुरु के प्रीति मन में लाइया। सु नीरदि वसु विधि द्रव्य ले जिन देव पद चढ़ाइया। ऊँ ह्रीं षट् चत्वारिंशद् गुणोपेत अरहन्त देवेभ्यः पूर्णाध्यं निर्वपामीति स्वाहा।। ऊँ ह्रीं अरहन्त परमेष्ठि देवेभ्यो नमः स्वाहा। (यहां 9 बार जाप करें।) 961
SR No.009254
Book TitleVidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZZZ Unknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1409
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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