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________________ अनियारे शुभ अक्षत ताजे चन्द्र किरण सम लाऊं। पुंज करूं जिनराज चरण ढिग अक्षयनिधि को पाऊं।। श्री अरहन्त सकल परमात्म केवल ज्ञानी राजै। होवे भव भव मांहि सहाई याते भव भय भाजे।। ऊँ ह्रीं श्री चत्वारिंशद् गुणोपेत अरहन्त परमेष्ठिभ्यो अक्षय पद प्राप्तयै अक्षतान् निर्वपामीति स्वाहा। भांति भंति के पुष्प सुगन्धित डाली भर कर लाया। छोड़े प्रभु के उत्तम पद में मदन वाण विनिशाया।। श्री अरहन्त सकल परमात्म केवल ज्ञानी राजै। होवे भव भव मांहि सहाई याते भव भय भाज।। ऊँ ह्रीं श्री चत्वारिंशद् गुणोपेत अरहन्त परमेष्ठिभ्यः काम वाणं विनाशनाय पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा। घेवर वावर लाडु पेडा बहु विधि व्यंजन ताजे। थाल सजाकर भेंट चरण ढिग रोग क्षधा सब भाजे।। श्री अरहन्त सकल परमात्म केवल ज्ञानी राजै। होवे भव भव मांहि सहाई याते भव भय भाजे।। ऊँ ह्रीं श्री चत्वारिंशद गुणोपेत अरहन्त परमेष्ठिभ्यो क्षुधा रोग विनाशनाय नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा। गोधृत अरु कर्पूर रतन को दीपक सुन्दर जोऊं। आरती करूं जिनराज प्रभु की मोहतिमिर को खोऊं।। श्री अरहन्त सकल परमात्म केवल ज्ञानी राजै। होवे भव भव मांहि सहाई याते भव भय भाजे।। ॐ ह्रीं श्री चत्वारिंशद् गुणोपेत अरहन्त परमेष्ठिभ्यो मोहान्धकार विनाशनाय दीपं निर्वपामीति स्वाहा। 950
SR No.009254
Book TitleVidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZZZ Unknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1409
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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