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________________ मुनि तन विषें जिम, होय साता भली, सोहि विधि करें उर, भक्ति भावां मिली। साधू-समाधी यह, भावना है सही, कारण षोडश ये, भावनाएं कहीं।। राह जब चले मुनि खेद तन में लहे, तथा बहु तप थकी, काय निर्बल रहे। देख इन तबै भवि, पांव चंपै सही, कारण षोडश ये, भावनाएं कहीं ।। देव जिनराय की, भक्ति पूजा करे, कण्ठ मधुरे थकी, गान शुभ उच्चरे । भक्ति अरिहन्त सो भाव हैं सही, कारण षोडश ये, भावनाएं कहीं।। संघपति जगतगुरु, तीस षट् गुण धरे, लखे पर मन तनी, भाव समता भरे। धर्म तीरथ तने, धीर धारी सही, कारण षोडश ये, भावनाएं कहीं।। अंग ग्यारह लखे, पूर्व दसचार जी, और गुन बने त्रय ज्ञान चव धार जी। भक्ति इन तनी यह भाव शुभदा सही, कारण षोडश ये, भावनाएं कहीं।। भक्ति जिनवाणि की, करे मन लाय जी, मुनि आवशि करें, भक्ति तिन भाय जी। भाव सो प्रवचन, ज्ञान सुखदा सही, कारण षोडश ये, भावनाऐं कहीं।। मनवचन काय धन, लाय हरषाय जी, धर्म उद्योत करि पुण्य उपजाय जी। मार्गपरभावना, अंग सुखदा सही, कारण षोडश ये, भावनाएं कहीं। वानिजिनविनयतें, सुने पढ़ि है भली, भाव वात्सल्य, प्रवचन पुण्य की रली। या थकी भी महा, पुण्यफल ले सही, कारण षोडश ये, भावनाएं कहीं।। दोहा इत्यादिक ये भावना, षोडश भेद अनूप । भावे इनको भक्तितें, ‘टेक' मोक्ष सिध रूप।। ऊँ ह्रीं श्री दर्शनविशुद्ध्यादि षोडशकारणेभ्यः महाघ्यम्। (इति षोडशकारण विधान उद्यापन समाप्त) 941
SR No.009254
Book TitleVidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZZZ Unknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1409
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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