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________________ जिनमन्दिरजिनबिम्ब करावे, फेर प्रतिष्ठा कर हरषावे। कर उछाह धर्म परभावा, सो प्रभावना अंग सुनावा।। तप बहु करे उग्र सुख पावे, सिंहनिःक्रीडित आदि करावे। भारीउग्र महातप आने, सो प्रभावना अंग जु ठाने।। मतिश्रुत अवधिज्ञानतें भाई, मनपरजय आदि सुखदाई। इनतें जग के संशय खोवे, सो प्रभावना अंगमयहोवे।। दोहा परभावन के भेद बहु, करे भव्य मन सोय। ताको जिनपद होत है, अधिक कहे क्या कोय।। ॐ ह्रीं श्री मार्गप्रभावनाभावनायै पूर्णाध्यम् निर्वपामीति स्वाहा। 16. प्रवचनवात्सल्य भावना पूजा (अडिल्ल छन्द) तिनकी वानी प्रवचन जग में सार है, करुणासागर करत भव पार है। याको वत्सल भाव प्रीति मन लाय है, सो इहां प्रवचन थाप भावना भाय है।। ऊँ ह्रीं श्री प्रवचनवात्सल्यभावना ! अत्र अवतर अवतर संवौषट् आह्वाननम्। ऊँ ह्रीं श्री प्रवचनवात्सल्यभावना ! अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः स्थापनम्। ऊँ ह्रीं श्री प्रवचनवात्सल्यभावना ! अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् सन्निधापनम्। (बेसरी छन्द) गंगानदी की निर्मल नीरा, उज्ज्वल सुभगगन्ध ज्यों क्षीरा। ___ भले पात्र में धर थुति गाई, पूजों प्रवचनवत्सल भाई।। ऊँ ह्रीं श्री प्रवचनवात्सल्यभावनायै जलम् निर्वपामीति स्वाहा। 935
SR No.009254
Book TitleVidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZZZ Unknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1409
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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