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________________ 15. मार्गप्रभावना भावना पूजा स्थापना (अडिल्ल छन्द) मन वच तन धन लाय बुद्धि तप भावतें, धर्म उद्योत करे भवि अति ही चावतें। मार्गप्रभावना भाव तीर्थपद दाय जी, सो मैं थापन थाप जजों थुति लाय जी।। ऊँ ह्रीं श्री मार्गप्रभावनाभावना ! अत्र अवतर अवतर संवौषट् आह्वाननम्। ॐ ह्रीं श्री मार्गप्रभावनाभावना ! अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः स्थापनम्। ऊँ ह्रीं श्री मार्गप्रभावनाभावना ! अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् सन्निधापनम्। अष्टक - मुनियानन्द की चाल क्षीरदधि तानों ले, नीर निरमल सही, कनकझारी धरयो, महापुण्य की मही। तीर्थपद भाव को, धार मन माँहि जी, पूजिहों मार्गपर-भावना ठांहि जी।। ऊँ ह्रीं श्री मार्गप्रभावनाभावनायै जलम् निर्वपामीति स्वाहा। चन्दना नीर घसि गन्धमय सारजी, सुभग पातर विर्षे, जगत तै धार जी। तीर्थपद भाव को, धार मन माँहि जी, पूजिहों मार्गपर-भावना ठांहि जी।। ॐ ह्रीं श्री मार्गप्रभावनाभावनायै चंदनम् निर्वपामीति स्वाहा। अक्षता खण्ड-बीन नखशिख सही, उज्ज्वला कली जिम, जाय कैसी कही। तीर्थपद भाव को, धार मन माँहि जी, पूजिहों मार्गपर-भावना ठांहि जी। ॐ ह्रीं श्री मार्गप्रभावनाभावनायै अक्षतान् निर्वपामीति स्वाहा।। फूल सुरवृक्ष के, गन्धमय सार जी, रंग शुभ लेयकर, माल थुति धार जी। तीर्थपद भाव को, धार मन माँहि जी, पूजिहों मार्गपर-भावना ठांहि जी।। ऊँ ह्रीं श्री मार्गप्रभावनाभावनायै पुष्पम् निर्वपामीति स्वाहा। 931
SR No.009254
Book TitleVidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZZZ Unknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1409
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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