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________________ 13. प्रवचनभक्ति भावना पूजा (अडिल्ल छन्द) जिनकी वाणी सिद्धान्त संग ग्यारह सही, चौदह पूरब और प्रकीर्णक धुनि कही। षटकायिक जिय राखन को जननी-समा, सो इहां थापि जजों, काय मनवचरमा।। ॐ ह्रीं श्री प्रवचनभक्तिभावना ! अत्र अवतर अवतर संवौषट् आह्वाननम्। ऊँ ह्रीं श्री प्रवचनभक्तिभावना ! अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः स्थापनम्। ऊँ ह्रीं श्री प्रवचनभक्तिभावना ! अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् सन्निधापनम्। चौपाई छन्द पदम कुण्ड को निर्मल नीर, रतनजड़ि त झारी धरि धीर। पूजों प्रवचन जिनधुनि सोय, तातो जनम मरण नहिं कोय।। ऊँ ह्रीं श्री प्रवचनभक्ति भावनायै जलम् निर्वपामीति स्वाहा। चन्दन बावनघस जल डारि, कनकपियाले धर हित धार। पूजों प्रवचन जिनधुनि सोय, ताफल भवतप कबहुँ न होय।। ऊँ ह्रीं श्री प्रवचनभक्ति भावनायै चंदनम् निर्वपामीति स्वाहा। अक्षत मुक्ताफलसम जान, पातर मैं धरि निजकर आन। पूजों प्रवचन जिनधुनि सोय, ताफल अखयथान शिव होय।। ऊँ ह्रीं श्री प्रवचनभक्ति भावनायै अक्षतान् निर्वपामीति स्वाहा। फूलकनक सुरतरु के लाय, माल करी मनमें हरषाय। पूजों प्रवचन जिनधुनि सोय, ताफल कामनाश सब होय।। ऊँ ह्रीं श्री प्रवचनभक्ति भावनायै पुष्पम् निर्वपामीति स्वाहा। 921
SR No.009254
Book TitleVidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZZZ Unknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1409
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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