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________________ ज्ञान वसु मति श्रुत, आदि जे फल कहे, और बस ज्ञान के, भेद वर्णन ठहे। ज्ञानपरवाद पूरब, तिको जानिये, या धरा बहुश्रुत, जजों थुति ठानिये।। ऊँ ह्रीं ज्ञानप्रवादपूर्वसहितायै श्री बहुश्रुतिभक्ति भावनायै अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा। वचन के भेद सत, असत अनुभय उभय, समिति गुप्ती तने, भाव-भाखे समय। सत्यपरवाद पूरब विर्षे सब कहे, या धरा बहुश्रुत, जजों मन वच ठये।। ऊँ ह्रीं सत्यप्रवादपूर्वसहितायै श्री बहुश्रुतिभक्ति भावनायै अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा। जीव निश्चय नये, और व्यवहार है, जीव अस्तित्व विधि, कथन अनुसार है। पूर्व यह आत्मपर-वाद में सब कहो, या धरा बहुश्रुत, जजों मन वच सही।। ऊँ ह्रीं आत्मप्रवादपूर्वसहितायै श्री बहुश्रुतिभक्ति भावनायै अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा। कर्मबन्ध उदय सत, मूलकर्म जानिये, प्रकृति उत्तर तर्ने, भेद बहु मानिये। कर्म परवाद पूरब विर्षे इमि कही, या धरा बहुश्रुत, जजों मन वच सही।। ऊँ ह्रीं कर्मप्रवादपूर्वसहितायै श्री बहुश्रुतिभक्ति भावनायै अयम् निर्वपामीति स्वाहा। या विषं समिति व्रत, तप निदेशा सही, सकल अघ त्याग की, रीति तामें कही। यह प्रत्याख्यान पूरब सबै वरनयो, या धरा बहुश्रुत जजों सब सँग नयो॥ ॐ ह्रीं प्रत्याख्यानपूर्वसहितायै श्री बहुश्रुतिभक्ति भावनायै अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा। या विर्षे तप विद्या, साधने मन्त्र जी, विद्या सामर्थ्य फल, और विधि अन्यजी। पूर्व विद्यानुवादा विर्षे इमि कही, या धरा बहश्रुत जजों मन वच सही।। ऊँ ह्रीं विद्यानुवादपूर्वसहितायै श्री बहुश्रुतिभक्ति भावनायै अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा। 918
SR No.009254
Book TitleVidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZZZ Unknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1409
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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