SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 907
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ निशदिन जिनवानी अभ्यास, सो स्वाध्याय महातपवास। याको करें आचारज सोय, ते गुरु जजों भाव शुभ होय।। ॐ ह्रीं श्री स्वाध्यायतपःसहितायै श्री आचार्यभक्ति भावनायै अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा। काय ममत परिहार कराय, सो व्युत्सर्ग नाम तप भाय। याको करें आचारज सोय, ते गुरु जजों भाव शुभ होय।। ऊँ ह्रीं श्री व्युत्सर्गतपःसहितायै श्री आचार्यभक्ति भावनायै अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा। थिर मन आर्तरोद्र परिहार, सो ही ध्यान नाम तप भाय। याको करें आचारज सोय, ते गुरु जजों भाव शुभ होय।। ऊँ ह्रीं श्री ध्यानतपःसहितायै श्री आचार्यभक्ति भावनायै अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा। ये तप द्वादश शिवमग जान, तप के करत होय उर ज्ञान। याको करें आचारज सोय, ते गुरु जजों भाव शुभ होय।। ऊँ ह्रीं श्री द्वादशतपःसहितायै श्री आचार्यभक्ति भावनायै अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा। (बेसरी छन्द) सब जीवन के समता भावा, उत्तम धर्म सु शिवमग नावा। याको आचारज तिन भावे, तिनपद जजों भाव शुभ ध्यावे।। ऊँ ह्रीं श्री उत्तमक्षमाधर्मसहितायै श्री आचार्यभक्ति भावनायै अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा। मानभाव सबही निरवारा, मार्दव धर्म जान यह प्यारा। याको आचारज उर आने, तिनपद जजों फलैअघ हाने।। ऊँ ह्रीं श्री उत्तममार्दवधर्मसहितायै श्री आचार्यभक्ति भावनायै अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा। 907
SR No.009254
Book TitleVidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZZZ Unknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1409
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy