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________________ उज्ज्वल जिमि गंगधार रतनमयी सार जी, चंवर सुढोरें देव भक्ति के लारजी। प्रातिहार्य यह इन जुत अर्हदेवजी, ताकी भक्ति सुभावन करिहो सेवजी।। ऊँ ह्रीं श्री चामरप्रातिहार्यसहितायै अर्हद्भक्तिभावनायै अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा। सिंहासन जिमि मेरु रतन करकै जडवा, प्रातिहार्य जगपूज्य किन्हीं यह ना घडया। इनके धारक देव कहे अरिहन्त जी, तिनके भक्ति सभावन शिव को पंथजी।। ऊँ ह्रीं श्री सिंहासनप्रातिहार्यसहितायै अर्हद्भक्तिभावनायै अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा। जिनके तनकी ज्योति-चक्र ताको सही, ताके देखे लखे पूर्वभव की मही। प्रातिहार्य यह इन जुत अर्हदेव जी, ताकी भक्ति सुभावन करहों सेवजी।। ऊँ ह्रीं श्री प्रभामण्डलप्रातिहार्यसहितायै अर्हद्भक्तिभावनायै अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा। देव बजावें नभ में बहुविध बाजना, तिनकी धुनि चहुंओर महा अघ की हना। प्रातिहार्य इन सहित देव अर्हत सही, इनको भक्ति सुभावन पूजों शुभ मही॥ ॐ ह्रीं श्री दुन्दुभिप्रातिहार्यसहितायै अर्हद्भक्तिभावनायै अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा। छत्र तीन सिर धरें जगतत्रय नाथजी, प्रातिहार्य जुत भले विराजे तातजी। जगत देव अरिहन्त सुगुण के धार हैं, ताकी भक्ति सुभावन पूजों सार है।। ऊँ ह्रीं श्री छत्रत्रयप्रातिहार्यसहितायै अर्हद्रक्तिभावनायै अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा। धरै अनन्तो ज्ञान, लखे सब जग तनी, तीन काल की कथा, सकल जो जो बनी। या अतिशयजुत देव जान अरिहन्तजी, तिनको भक्ति सुभावन सेवन सन्तजी। ऊँ ह्रीं श्री अनन्तज्ञानसहितायै अर्हद्भक्तिभावनायै अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा। 900
SR No.009254
Book TitleVidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZZZ Unknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1409
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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