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________________ इत्यादिक त्यागी जे होंय, शिववांछक जियरक्षक सोय। भवत्यागी रागी निर्वान, सो मैं जजों त्याग भवहान।। ऊँ ह्रीं श्री त्यागभावनायै अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा। जयमाला सोरठा त्याग मोक्षमग लोय, जगत पूज्य त्यागी सही। बिना त्याग भव होय, तातें त्याग जजों सही।। मुनियानन्द की चाल त्यागभावन बिना, मोक्ष जावना नहीं, त्याग ही मोक्षमग, जान सब श्रुत कही। त्याग मोह हरन को, महाभट जानिये, त्याग ही मूल समता तनो ठानिये।। त्याग ही कर्मगिरि, वज्रसम है सही, त्याग मनविकलता रोकने पटु कही।। त्याग शिवदायको जान मन लाइये, त्यागके बल थकी, कर्मदेव जालिये। त्यगा मुनिराज को, भलो भूषण सही, त्याग को नमे सुर, खगा चक्री मही। पूजि हैं त्याग को, इन्द्र थुति लायजी, मैं जजों त्याग मन, वचन तन आयजी।। त्याग विनराग होत कर सके सोहनो, रागजुत जीव को, हार भागे मनो। त्याग कल्पवृक्षसम देय वांछित सही, त्याग इमि जानि मैं, जजों सिर दे मही।। त्याग त्रिभुवन विषे, सार धर्म अंग है, त्याग के जोर तें, होय कर्मभंग है। त्याग को देख का-सुर नरा धूजि हैं, त्याग को मैं जजों, और भवि पूज है।। त्यागफल उदयतें, होय है आय जी, इंद्र वा देव खग चक्रधर थाय जी। मोक्ष ताही भवे, तथा कर्म तें लहे, मैं जजों त्यागभवि, जजों जिनधुनि कहे।। त्याग जग पूज्य है, त्यागधर पूज्य जी, त्यागते अवधि मनपर्ज सब सूझ जी।। त्याग तारे समुद्र, जगत अति दुद्धरा, मैं जजों त्याग को, और पूजो नरा।। त्याग खोटे किये, कर्म को झट हरे, त्यागते सुभट मन, और इन्द्री मरे। त्याग ही मरण का, भय निवारे सही, मैं जजों त्याग को, मनवचन तन कही।। 882
SR No.009254
Book TitleVidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZZZ Unknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1409
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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