SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 878
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ दोहा जग दुखरूप विचार, विरचे भवतें साधवा । जगसुख नाशि विचार, पूजों मैं संवेगता ।। ऊँ ह्रीं संवेगभावनायै पूर्णाघ्यम् निर्वपामीति स्वाहा। 6. त्याग भावना पूजा सोरठा त्याग-भावना सार, भवदधि नौका जानिये। इमि लखि मनवच धार, थापन कर पूजों सही ।। ऊँ ह्रीं श्री त्यागभावना ! अत्र अवतर अवतर संवौषट् आह्वाननम्। ऊँ ह्रीं श्री त्यागभावना ! अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः स्थापनम्। ऊँ ह्रीं श्री त्यागभावना ! अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् सन्निधापनम्। पद्धरि छन्द जल कनकझारि धरि भाव लाय, अति उज्जवल क्षीरसमुद्र भाया। पूजों सु त्याग भावन महान, ताके फल जनमजरा न जान।। ॐ ह्रीं श्री त्यागभावनायै जलम् निर्वपामीति स्वाहा। चन्दन घसि निर्मल नीर लाय, धरि कनकपात्र में भक्ति भाय। पूजों सु त्याग भावन महान, ताके फल भवतप नाँहि जान।। ऊँ ह्रीं श्री त्यागभावनायै चंदनम् निर्वपामीति स्वाहा। अक्षय मुक्ताफल से बखान, बिनखण्ड गन्ध उज्जवल महान। पूजों सु त्याग भावन सुभाय, ताफल अखण्ड पद होय आय।। ऊँ ह्रीं श्री त्यागभावनायै अक्षतान् निर्वपामीति स्वाहा। 878
SR No.009254
Book TitleVidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZZZ Unknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1409
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy