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________________ चींटी खटमल जुआं तिरूला जानिये, और कुंथवा आदि त्रीन्द्रिय मानिये। या गति वेदन जोय पाप तज वृष धरे, सो संवेगता जजों जगतभय थरहरे।। ॐ ह्रीं श्री त्रीन्द्रियदुःखविरक्ततायै श्रीसंवेगभावनायै अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा। माखी मच्छर भ्रमर और टीडी सही, डांस पतंगा आदि जीव चब-अख कही। इन तन वेदन जोय पापभय लाय है, सो संवेगता भव जजों वृषदाय है।। ॐ ह्रीं श्री चतुरिन्द्रियदुःखविरक्ततायै श्रीसंवेगभावनायै अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा। हाथी घोड़ा देव मनुज नारक सही, सिंह सूर मृग आदि और पंच अख कही। ताकी उत्पति मृत्यु देखि भय लाय है, सो संवेग जजों वृषधरि हरषाय है।। ॐ ह्रीं श्री पंचेन्द्रियदुःखविरक्ततायै श्रीसंवेगभावनायै अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा। जनम राग दुख करे मीत उर इमि सहे, तल सिर ऊपर पांव लिप्त मलते रहें। इत्यादिक दुख जनम जान विरकत सही, सो पूजों संवेग भाव शिवदा मही।। ऊँ ह्रीं श्री जन्मदुःखविरक्ततायै श्रीसंवेगभावनायै अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा। बिच्छू लाखों डसे तुल्य दुख मरण का, इने आदि दुख और कालवश परनका। मरण महादख जान जीव विरकत सही, सो पूजों संवेग भाव शिवदा मही।। ऊँ ह्रीं श्री मरणदुःखविरक्ततायै श्रीसंवेगभावनायै अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा। (गीता छन्द) इष्ट वस्तुवियोग का दुख, जगत में भरपूर है, धन पुत्र नारि पितादि सज्जन, मरणबार हूँ दूर हैं। इन आदि इष्ट पदार्थ विनसे, देख जो विरकत सही, 875
SR No.009254
Book TitleVidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZZZ Unknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1409
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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