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________________ अब सुन पंच कहे श्रुति वाण सु काम के, शीलहरण को सूर नाहिं किस आनि के। यातें रहित सुशील शुद्ध मनभाय है, सो मैं पूजों मनवचकाय लगाय है।। ॐ ह्रीं श्री पंचवाणकामरहितशीलवाड़सहित-शीलव्रतेष्वनतिचार भावनायै अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा। कामवाण करि पीडित चित जिस होय है, देख तिया मन मुलकन हास्य बहोत है। या दूषण ते रहित शील शुध भाय है, सो मैं पूजों मनवचकाय लगाय है।। ॐ ह्रीं श्री कामौत्सुक्यहास्यकामवाणरहितशीलवाड़सहित-शीलव्रतेष्वनतिचार भावनायै अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा। बार बार तिय देखन की बांछा रहे, और न कछु सुहावे अवलोकन चहे। ऐसे मलते रहित शील शुध भाव है, सो मैं पूजों मनवचकाय लगाय है।। ऊँ ह्रीं श्री अवलोकनकामवाणरहितशीलवाड़सहित-शीलव्रतेष्वनतिचार भावनायै अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा। देख नारि की ओर हास्य चितको करे, कामवचन तन ठान घनो कौतुक धरे। ऐसे अरितें रहित शील शुध भाव है, सो मैं पूजों मनवचकाय लगाय है।। ऊँ ह्रीं श्री हास्यकामवाणरहितशीलवाड़सहित-शीलव्रतेष्वनतिचार भावनायै अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा। सैन सैना बतावन कामी चित रहे, नैन बाणतें हाथ करन किरिया लहे। ऐसे औगुण रहित शील जो भाय है, सो मैं पूजों मनवचकाय लगाय है।। ऊँ ह्रीं श्री नेत्रसंचालनकामवाणरहितशीलवाड़सहित-शीलव्रतेष्वनतिचार भावनायै अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा। 860
SR No.009254
Book TitleVidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZZZ Unknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1409
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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