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________________ स्वाहा। उग्रतपः प्रभुतिप्रभु-भगवन्महदादिनामपर्यन्ताः। पूर्णाघमापिता वः शिवदास्तु महर्षयः सन्तु।।25।। ऊँ ह्रीं अहँ उग्रतपः प्रभृतिमहावीर बड्ढमाण पर्यन्तर्द्धि प्राप्तभ्यो गणधरेभ्यो नमः पूर्णाध्यं निर्वपामीति स्वाहा। (वसन्ततिलका) सर्वानृषीन्निखिलतापहरान् भजामि, पूर्णार्घदानवशतः परमान्यचित्तान्। निःशेषशोकगुरुतापहरान् परांश्च, संसिद्धिवृद्धिवरबुद्धिसमृद्धिदातॄन्।।26॥ ऊँ ह्रीं झ्वीं श्रीं अर्ह अ सि आ उ सा अप्रतिचक्रेफट विचक्राय झौं झौं नमः पूर्णाघु निर्वपामीति स्वाहा। (जपमन्त्रः) ऊँ ह्रीं झ्वीं श्रीं अ सि आ उ सा अप्रतिचक्रे फट विचक्राय झौं झौं नमः स्वाहा। अथ जयमाला जय जय गणधारण दुरितनिवारण पापभीतिमददारणका वसुकर्धिऋद्धीश्वर परममुनीश्वर पंचभेदभववारणक।।1।। जय पापतापजलदप्रकाश जय मोहमानरतिमीतिनाश। जय सारबार भुवि चिद्विलास जय भावनष्ट बहुमोहपाश।।2।। जय पुत्रमित्रधनदस्वभाव जय मुक्तदोषमदमान्द्यभाव। 827
SR No.009254
Book TitleVidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZZZ Unknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1409
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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