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________________ मुनिमार्ग प्रथम सीढ़ी शिव की, इसके बिन सुख आभास नहीं। अति कठिन गेह परिवार त्याग, एक त्याग बिना कल्याण नहीं।। सब कुछ जीरण तृण वत तजके, जिन परम दिगम्बर वेष धरा। यह वेश बताता, अन्तकाल धन देह यहीं रह जाय धरा।। बस धर्म मात्र जीव साथी, मुनिमुद्रा ध्यान दिलाती है। सम्यक श्रद्धा, सतज्ञान आचरण राह मुक्ति को जाती है।। ऊँ ह्रीं अष्ट विंशति मूलगुण भूषिताय साधु परमेष्ठिने नमः अर्घ निर्वपामीति स्वाहा। जयमाला णमोकार मंत्र शुभ महामंत्र, कष्टों से मुक्ति दिलाता है। दुख दारिद व्याधि मिटाता है, भवसागर पार लगाता है।। मैना सुन्दरि को अशुभ कर्म से कोढ़ी पति श्री पाल मिले। जिन धर्मी मैना का विवेक जागा, श्रद्धा के द्वार खुले।। जप णमोकार श्रद्धा पूर्वक, श्री सिद्धचक्र का पाठ किया। श्री पाल निरोगी हुये मंत्र जल से, सुगन्धि तन ठाठ लिया।।1।। अंजन आंखों में लगा स्वयं, पर को अदृश्य बन जाता था। रानी का हार चुरा अन्जन, भयभीत भागता जाता था। राजाज्ञा मृत्युदण्ड सुनकर, अंजन मन में अति घबराया। तन मोह छोड़, शुभ कर्म उदय से णमोकार मन में भाया।।2।। मंत्राक्षर का कुछ ज्ञान न था, महिमा में था श्रद्धान अटल। सुमिरन करता शुभ णमोकार, लग गया काटने डोर सबल।। शुभ णमोकार की महिमा से, अन्जन बन गया निरंजन था। मेढ़क का पूजन भाव मात्र, सुर सुखदायी, दुख मंजन था।3।। अर्हन्त देव की गुण गरिमा का ज्ञान, अमित सुखदाता है। 804
SR No.009254
Book TitleVidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZZZ Unknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1409
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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