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________________ षट द्रव्यों के विषय में, अस्ति नास्ति व्याख्यान। सप्त भंगि आश्रय लिये, यह श्रुत ज्ञान प्रधान।। साठ लाख पद का धनी, यह श्रुत ज्ञान विशुद्ध। भ्रम संशय का शमन कर, करता ज्ञान समृद्ध।।15।। ॐ ह्रीं अस्ति नास्ति प्रवाद पूर्व श्रुतज्ञान पठन पाठन गुण भूषिताय उपाध्याय परमेष्ठिने नमः अर्घ निर्वपामीति स्वाहा। पांच ज्ञान मति श्रुति अवधि, मन-पर्यय कैवल्य। तीन कुज्ञान कथन करै, हरता मन की शल्य। लाख निन्यानव, अरू सहस निन्यानव, पद रूप। ___ नौ सौ निन्यानव धरै, ज्ञानप्रवाद अनूप।।16।। ऊँ ह्रीं ज्ञानप्रवादपूर्व पठन पाठन गुण भूषिताय उपाध्याय परमेष्ठिने नमः अर्घ निर्वपामीति स्वाहा। सत्य वचन का मूल है, वचन गुप्ति संस्कार। सत्य वचन सुख मूल है, वच असत्य दुखकार।। कोटि एक षट पदों में, वरणे सत्य स्वभाव। राजा वसु नारकि भया, वचन असत्य प्रभाव।।17।। ॐ ह्रीं सत्यप्रवादपूर्व श्रुतज्ञान पठन पाठन गुण भूषिताय उपाध्याय परमेष्ठिने नमः अर्घ निर्वपामीति स्वाहा। सुख दुख फल भोगी स्वयं, जीव कर्म करतार। शुद्धातम बल ज्ञान सुख, का अथाह भंडार।। पूरव आत्मप्रवाद दे, शुद्धातम का ज्ञान। छब्बिस कोटी पद करें, कर्म श्रृंखला हान।।18।। 794
SR No.009254
Book TitleVidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZZZ Unknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1409
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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