SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 758
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अष्टमवर्ष तृतीय रविवार, मिथ्यादर्शन करे निवार। धर्मकर्म निशिवासर धार, इसमें नीरस ले आहार । ऊँ ह्रीं श्री रविवार व्रतस्य अष्टमवर्षे तृतीयरविवासरे क्षायिकसम्यक्त्व लब्धिविभूषिताय श्री पार्शवनाथ जिनेन्द्राय अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा। अष्टमवर्ष तुरिय रविवार, मिथ्याचरित करे परिहार। धर्मकर्म निशिवासर धार, इसमें नीरस ले आहार।। ऊँ ह्रीं श्री रविवार व्रतस्य अष्टमवर्षे चतुर्थरविवासरे क्षायिकचारित्र लब्धिविभूषिताय श्री पाश्वनाथ जिनेन्द्राय अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा। अष्टम वर्ष पंचम रविवार, दानविघ्न पर करे प्रहार । धर्मकर्म निशिवासर धार, इसमें नीरस ले आहार। ऊँ ह्रीं श्री रविवार व्रतस्य अष्टमवर्षे पंचमरविवासरे क्षायिकदान लब्धिविभूषिताय श्री पाश्वनाथ जिनेन्द्राय अघ्यम् निर्वपामीति स्वाहा। अष्टमवर्ष षष्ठ रविवार, लाभ- विघ्नहर्ता निर्धार। धर्मकर्म निशिवासर धार, इसमें नीरस ले आहार । ॐ ह्रीं श्री रविवार व्रतस्य अष्टमवर्षे षष्ठरविवासरे क्षायिकलाभ लब्धिविभूषिताय श्री पार्शवनाथ जिनेन्द्राय अघ्यम् निर्वपामीति स्वाहा। अष्टमवर्ष सप्त रविवार, भोगविघ्न का नाशन हार । धर्मकर्म निशिवासर धार, इसमें नीरस ले आहार ।। ऊँ ह्रीं श्री रविवार व्रतस्य अष्टमवर्षे सप्तमरविवासरे क्षायिकभोग लब्धिविभूषिताय श्री पार्शवनाथ जिनेन्द्राय अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा। 758
SR No.009254
Book TitleVidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZZZ Unknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1409
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy