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________________ षष्ठ वर्ष व्रत नवम प्रधान, यह अनशनतपका सोपान। इसमें रविव्रत नियम प्रमान, केवल एक अन्न अनुपान।। ऊँ ह्रीं श्री रविवार व्रतस्य षष्ठवर्षे नवमरविवासरे क्षायिकवीर्यलब्धि विभूषिताय श्री पाश्वनाथ जिनेन्द्राय अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा। षष्ठवर्ष नव रवि आयाम, पाश्वप्रभु को कोटि प्रणाम। इसमें रविव्रत नियम प्रमान, केवल एक अन्न अनुपान।। ॐ ह्रीं श्री रविवार व्रतस्य षष्ठवर्षे नवसु आदित्यवारेषु नवक्षायिकलब्धि विभूषिताय श्री पार्शवनाथ जिनेन्द्राय अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा। सप्तम पूजा सित अषाढ़ पहि ला रविवार, करो सविधिव्रत को स्वीकार। रविव्रत सप्तमवर्ष महान, इसमें गो रसत्याग प्रधान।। ऊँ ह्रीं श्री रविवारव्रते सप्तमवर्षे प्रथमरविवासरे क्षायिकज्ञान लब्धिविभूषिताय श्री पार्शवनाथ जिनेन्द्राय अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा। मंगलमय द्वितीय रविवार, रखो सविधि आचार विचार। रविव्रत सप्तमवर्ष महान, इसमें गोरसत्याग प्रधान।। ऊँ ह्रीं श्री रविवार व्रते सप्तमवर्षे द्वितीयरविवासरे क्षायिकदर्शन लब्धिविभूषिताय श्री पार्शवनाथ जिनेन्द्राय अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा। सुखदायक तीज रविवार, धर्मामृतका परावार। रविव्रत सप्तमवर्ष महान, इसमें गोरसत्याग प्रधान।। ऊँ ह्रीं श्री रविवार व्रते सप्तमवर्षे तृतीयरविवासरे क्षायिकसम्यक्त्व लब्धिविभूषिताय श्री पार्शवनाथ जिनेन्द्राय अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा। 755
SR No.009254
Book TitleVidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZZZ Unknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1409
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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