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________________ पंचमवर्ष तुरिय व्रतधार, वांछित स्वर्ग मुक्ति का द्वार। भवविध्वंसक व्रत रविवार, तक्रसहित ओदन आहार।। ऊँ ह्रीं श्री रविवार व्रतस्य पंचमवर्षे चतुर्थरविवासरे क्षायिकचारित्र लब्धिविभूषिताय श्री पाश्वनाथ जिनेन्द्राय अध्यम निर्वपामीति स्वाहा। पांचवर्ष पंचमव्रत शुद्ध, करें कर्मबन्धन अवरुद्ध। पापविदारक व्रत रविवार, तक्रसहित ओदन आहार।। ऊँ ह्रीं श्री रविवार व्रतस्य पंचमवर्षे पंचमरविवासरे क्षायिकदान लब्धिविभूषिताय श्री पार्शवनाथ जिनेन्द्राय अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा। पंचमवर्ष सुखद संयोग, छटवां रविव्रत महामनोग। धर्मप्रसारक व्रत रविवार, तक्रसहित ओदन आहार।। ऊँ ह्रीं श्री रविवार व्रतस्य पंचमवर्षे षष्ठरविवासरे क्षायिकलाभ लब्धिविभूषिताय श्री पाश्वनाथ जिनेन्द्राय अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा। सप्तम रविव्रत पंचमसाल मन में धर गुण की मणिमाल। दुःखसंहारक व्रत रविवार, तक्रसहित ओदन आहार।। ऊँ ह्रीं श्री रविवार व्रतस्य पंचमवर्षे सप्तमरविवासरे क्षायिकभोग लब्धिविभूषिताय श्री पार्शवनाथ जिनेन्द्राय अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा। अष्टम रविब्रत पंचम साल, हरे सकल जग के जंजाल। भवसंहारक व्रत रविवार, तक्रसहित ओदन आहार।। ॐ ह्रीं श्री रविवार व्रतस्य पंचमवर्षे अष्टमरविवासरे क्षायिकोपभोगलब्धि विभूषिताय श्री पाश्वनाथ जिनेन्द्राय अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा। 752
SR No.009254
Book TitleVidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZZZ Unknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1409
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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