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________________ रागद्वेष इन्द्रियसुख विजयी, निष्कामी चारित्र प्रधान। आत्म झरोखे द्वारा जिनकी, मुनिगण ने पाई पहिचान।। जल चन्दन अक्षत नैवेद्यं, पुष्प दीप धू फल लाय। कनकथाल घर इन्हें चढ़ाने, आया निर्मल अघ्य बनाय || कामधेनु सा कल्पवृक्ष सा, दीजे मनवांछित वरदान। अष्टद्रव्य-मिश्रण स्वीकारे, जिनवर पाश्वनाथ भगवान।। ऊँ ह्रीं श्री पार्शवनाथ जिनेन्द्राय अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा। प्रथम पूजा मास असाढ़ पक्ष उजयार, अनशन करे नियम अनुसार। मंगलमयी दिवस रविवार, रविव्रत पूजन सुखदातार।। ऊँ ह्रीं श्री रविवारव्रतस्य प्रथमवर्षे प्रथमरविवासरे क्षायिकज्ञान लब्धिविभूषिताय श्री पार्शवनाथ जिनेन्द्राय अघ्यम् निर्वपामीति स्वाहा। दूजा शुभ रवि परम उदार, सदाचारयुत अनशन धार। मंगलमयी दिवस रविवार, रविव्रत पूजन सुखदातार।। ऊँ ह्रीं श्री रविवार व्रतस्य प्रथमवर्षे द्वितीयरविवासरे क्षायिकदर्शन लब्धिविभूषिताय श्री पाश्वनाथ जिनेन्द्राय अघ्यम् निर्वपामीति स्वाहा। तीजा रवि उपवास महान, वांछित फलदाता सुखखान। मंगलमयी दिवस रविवार, रविव्रत पूजन सुखदातार।। ऊँ ह्रीं श्री रविवार व्रतस्य प्रथमवर्षे तृतीयरविवासरे क्षायिकसम्यक्त्व लब्धिविभूषिताय श्री पार्शवनाथ जिनेन्द्राय अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा। 741
SR No.009254
Book TitleVidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZZZ Unknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1409
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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