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________________ (धत्ता) जय जय पंचाधिप, जित मदनाधिप, पंच परम गुरु लोकपति। श्री अभयचन्द पद अभयनन्दि गुरु, सुमतिसागर जिन ध्यान पति।। ॐ ह्रीं अर्हत् सिद्धाचार्योपाध्याय सर्व-साधु-पंच-परमेष्ठिभ्यो नमः जयमाला पूर्णाऱ्या निर्वपामीति स्वाहा। (दोहा) उदय रोग था मिट गया, शिर का गया जु रोग। परमानन्द निज में भया, सिद्धि सिंधु गत भोग।। ॥ इत्याशीर्वादः ॥ ।। इति श्री नवकार पैंतीसी पूजा (अनादि सिद्ध मंत्र पूजा) सम्पूर्ण।। 737
SR No.009254
Book TitleVidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZZZ Unknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1409
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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