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________________ प्रणव को पूजे सुख बढ़ जाता। दुःख पास में कभी न आता।। ऊँ ह्री- ॐ कार - बीजाक्षराय अघ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।168॥ ह्रीं - बीजाक्षर को पूजे हम। शांति करे भरता है दम।। ऊँ ह्रीं ह्रीं-बीजाक्षराय अघ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।169॥ शां- बीज सुख देता सार । भव्य जीव को देता तार || ॐ ह्रीं - शां - बीजाक्षराय अध्यं निर्वपामीति स्वाहा।। 170॥ तिं-बीजाक्षर भव भव हारी। इससे बनते शम दम धारी ॥ ॐ ह्रीं -ति- बीजाक्षराय अध्यं निर्वपामीति स्वाहा ॥ 171॥ कु-बीजाक्षर पूजे ध्यावें। अष्ट द्रव्य से गुण गण गावें।। ॐ ह्रीं-कु-बीजाक्षराय अघ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।। 172 रु-बीजाक्षर को पूजेंगे। अर्घ चढ़ाकर हम ध्यायेंगे।। ऊँ ह्रीं-रु-बीजाक्षराय अघ्यं निर्वपामीति स्वाहा।। 173॥ कु-बीजाक्षर भव का घाती। इसको पूजें होती ख्याती ।। ऊँ ह्रीं-कु-बीजाक्षराय अघ्यं निर्वपामीति स्वाहा ||174৷ रु-बीज अज्ञान नशावें गुरु के चरणों में ले जाये ।। ॐ ह्रीं -रु-बीजाक्षराय अघ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।175॥ 734
SR No.009254
Book TitleVidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZZZ Unknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1409
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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