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________________ विकट कर्म विपाक विदारै व्व-बीजाक्षर भव- जल तारे। दुर्गति हर यह सुगति पठावे, इसका यश हम मिलकर गावें।। ऊँ ह्रीं “व्व” बीजाक्षराय अघ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।150॥ ज्जा-बीजाक्षर भव भय हरता, भवसिंधु से पार है करता। मुनजन मन शम धनका रक्षक, पाप दुःख का है यह भक्षक।। ऊँ ह्रीं "ज्जा" बीजाक्षराय अध्यं निर्वपामीति स्वाहा॥151॥ मि- बीजाक्षर गणधर तारे, व्रत समूह जन के मन धारें। सकल बोध, हरे यह भ्रांति, देता है यह अनुपम शांति। ऊँ ह्रीं “मि’” बीजाक्षराय अघ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।152॥ केवलिपण्णत्तं धम्म सरणं पव्वज्जामि के - बीजाक्षर लोक में उत्तम, विपद जन्म हरे यह सत्तम । इसके जप से शिवपद पावे, इसको पूजें हम नित ध्यावें।। ऊँ ह्रीं “क” बीजाक्षराय अघ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।153॥ व- बीजाक्षर मदन नशावे, सर्व इन्द्र यक्षादिक ध्यावे । इसको पूजे शिवपद पावे, इससे सारे पाप पलावे।। ॐ ह्रीं “व” बीजाक्षराय अध्यं निर्वपामीति स्वाहा।। 154॥ लि- बीजाक्षर त्रिभुवन नायक, ज्ञान जन्य पारद यह लायक। गणधर का यह पंकज जानो, इसको पूजो उत्तम मानो।। C ऊँ ह्रीं “लि’” बीजाक्षराय अघ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।155॥ 731
SR No.009254
Book TitleVidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZZZ Unknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1409
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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