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________________ रि- बीजाक्षर सुख का दाता, उत्तम भाव बोध का दाता। केवलज्ञान को प्रकट कराता, पूजू होती दूर असाता।। ऊँ ह्रीं 'रि'' बीजाक्षराय अध्यं निर्वपामीति स्वाहा॥116॥ स- बीजाक्षर रोग नशावे, पुत्र कलत्र लोक में पावे। विश्व-ज्ञान ध्यान मन लावे, आत ज्ञान नाम वह पावे।। ऊँ ह्रीं “स” बीजाक्षराय अध्यं निर्वपामीति स्वाहा।।117।। र-बीजाक्षर गुण का धारी, शाकिनी डाकिनी हाकिनि हारी। भूत प्रेम नहीं पास में आवे, यक्षादिक सब दूर पलावें।। ऊँ ह्रीं “र” बीजाक्षराय अध्यं निर्वपामीति स्वाहा।।118।। णं- बीजाक्षर धर्म प्रदाता, लाकिनि काकिनि दूर हटाता। चौर आदिके क्लेश नशाता, चौर आदि नहिं पास में आता।। ऊँ ह्रीं “णं' बीजाक्षराय अध्यं निर्वपामीति स्वाहा।।119।। प-बीजाक्षर कार्य बनाता, वांछित फल का है यह दाता। सिंह शूकरादिक से बचाता, सव्र प्रमेय प्रकाश कराता।। ऊँ ह्रीं “प'' बीजाक्षराय अध्यं निर्वपामीति स्वाहा।।120।। व्व-बीजाक्षर मृत्यु जयी है, ध्यान काल बहु अतिशयी है। मुद्गल तोयत भीति भगाता, नागिन का भय दूर पलाता।। ॐ ह्रीं “व्व' बीजाक्षराय अध्यं निर्वपामीति स्वाहा।।121।। 725
SR No.009254
Book TitleVidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZZZ Unknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1409
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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