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________________ हं-बीजाक्षर शांति बढ़ाता, क्रोध लोभ भयगिरि को ढाता । अष्टमदों का कहा विजेता, पूजूं थाल अर्घ मैं लेता।। ऊँ ह्रीं “र” बीजाक्षराय अघ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।49॥ , ता-बीजाक्षर सूर्य समाना, मुनि ध्यान गत शुभ है माना। पुण्य-जीव को भव जल तारे, अष्ट द्रव्य से पूजूं सारे।। ऊँ ह्रीं “ता” बीजाक्षराय अघ्यं निर्वपामीति स्वाहा॥50॥ मं-बीजाक्षर शुद्धि प्रदाता, विश्व जीव को हित बतलाता। साधू गुण समूह को पूजूं, अर्घ उतारूं भक्ति से कूजूं।। ऊँ ह्रीं "मं" बीजाक्षराय अघ्यं निर्वपामीति स्वाहा॥51॥ ग-बीजाक्षर सूत्र का स्वामी, मंत्र साध्य का यह है नामी । चित्त स्वच्छ कर्ता अति रम्य, पूजूं महिता योगी गम्य।। ॐ ह्रीं "ग" बीजाक्षराय अध्यं निर्वपामीति स्वाहा॥52॥ - बीजाक्षर दान का कामी, दान स्वर्ग-गति देता नामी | लब्धि तथा कल्याण प्रदाता, पूजूं वंदू पाऊं साता।। " ॐ ह्रीं "लं" बीजाक्षराय अघ्यं निर्वपामीति स्वाहा॥53॥ 713
SR No.009254
Book TitleVidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZZZ Unknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1409
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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