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________________ मो-बीजाक्षर प्राण ईश है, मुनिगण ध्याते नमा शीश है। आत्म ब्रह्म के गुणगण पावे, इसको पूजे शिव पद पावें।। ऊँ ह्रीं “मो'' बीजाक्षराय अयं निर्वपामीति स्वाहा।।33॥ लो-बीजाक्षर मंगल-प्रद है, शिवपददायक यह नायक है। आदि देवके मुख से निकला, है इससे बढ़ती आत्मकला।। ॐ ह्रीं “लो'' बीजाक्षराय अध्यं निर्वपामीति स्वाहा।।34॥ ए-बीजाक्षर ब्रह्म-युक्त है, पाप के क्षालन में तत्पर है। सुदर्शन का बीज ज्ञान है, अष्ट द्रव्य से पूजू वर है।। ऊँ ह्रीं 'ए'' बीजाक्षराय अध्यं निर्वपामीति स्वाहा।।35॥ स-बीजाक्षर लोक ईश है, जैन लोक को मान्य रूप है। पूजू अर्घ चढ़ा कर ध्याके, श्री जिन भाषित चित्त लगाके।। ऊँ ह्रीं “स' बीजाक्षराय अयं निर्वपामीति स्वाहा।।36।। व्व-बीजाक्षर है जिन भाषित, सिद्धमंत्र शुभ शांति विकासित। आत्म-गंग से सदा प्रवाहित, पावन करता यह अपना हित।। ऊँ ह्रीं “व्व'' बीजाक्षराय अयं निर्वपामीति स्वाहा।।37॥ सा-बीजाक्षर पुण्य ईश है, स्वर्ग-मोक्ष-प्रद झुका शीश है। आत्म धर्म की प्रभा-राशि है, पूजूं इसको आत्म काशी है।। ऊँ ह्रीं “सा'' बीजाक्षराय अयं निर्वपामीति स्वाहा।।380 710
SR No.009254
Book TitleVidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZZZ Unknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1409
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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