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________________ पंचाचार-विभूषित गुरुवर, आतम-ज्योति जगावे। ज्ञान तपोनिधि कर्मदलन को, उठावें || ध्यान कुठार शान्तिसुधाकर की शुचिशीतल, रश्मिप्रकाश पसारें। संघ चतुर्विध के अधिनायक, काममहारिपु मारें।।3।। ओं ह्रीं श्री जगदापद्विनाशनहेतवे भरतैरावतविदेहादिशतैकसप्ततिक्षेत्रार्यखण्डे भूत भविष्यद्वर्तमानसर्वआचार्यपरमेष्ठिपदपंकजे सन्मतिसद्भक्त्युपेतामलतरखण्डोज्झितनिदानबन्धनाय कृतेज्याय श्री शान्तिनाथाय अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा। द्वादश अंगविभूषित मुनिवर, पाठक साधु सुधी के। मानविमर्दन करते निर्मद, गर्वित वादि कुधी के ध्यानाध्ययन निरन्तर जिनके, शिवसाधन दर्शावें। इष्टानिष्ट-संयोग वियोगे, हर्षविषाद न लावें॥4॥ ओं ह्रीं श्री जगदापद्विनाशनहेतवे भरतैरावतविदेहादिशतैकसप्ततिक्षेत्रार्यखण्डे भूत भविष्यद्वर्तमानपाठकपरमेष्ठिपदपंकजे सन्मतिसद्भक्त्युपेतामलतरखण्डोज्झितनिदानबन्धनाय कृतेज्याय श्री शान्तिनाथाय अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा। ज्ञानध्यानतप लीन निरन्तर, समता स्वादक योगी । विषयातीत-स्वरूप जितेन्द्रिय, आतमरस के भोगी। ध्यानकृपाण लिये मुनियोगी, कर्म महारिपु मारें। गुणश्रेणीयुत कर्म निर्जरा, निजगुण रूप विचारें॥5॥ ओं ह्रीं श्री जगदापद्विनाशनहेतवे भरतैरावतविदेहादिशतैकसप्ततिक्षेत्रार्यखण्डे भूत भविष्यद्वर्तमानसर्वसाधुपरमेष्ठिपदपंकजे सन्मतिसद्भक्त्युपेतामलतरखण्डोज्झितनिदानबन्धनाय कृतेज्याय श्री शान्तिनाथाय अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा। 69
SR No.009254
Book TitleVidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZZZ Unknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1409
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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