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________________ फल लौंग सुपारी श्रीफल भारी, भक्ति भरारी गह आनौं । फिर लाय बदामा खारिक ठामा, वांछित कामा फल जानौ । एसो फल लायो अति हरषायो, मुख गुन गायो पुण्य लही। आकिंचन धर्मा जजि शुभकर्मा दे फल परमा थान सही ।। ॐ ह्रीं श्री उत्तमाकिंचन्यधर्मांगाय मोक्षफलप्राप्तये फलं निर्वपामीति स्वाहा। जल चंदन लाया अक्षत भाया फूल मंगाया चरु जु धरी। ले दीपक धारा धूप अपारा श्री फल धारा अर्घ करी।। वह द्रव्य जु लाये भक्ति बढ़ाये ज्ञान सुपायें ध्यान लही। आकिंचन धर्मा जजि शुभकर्मा दे फल परमा थान सही ।। ऊँ ह्रीं श्री उत्तमाकिंचन्यधर्मांगाय अनघ्यपदप्राप्तये अघ्यं निर्वपामीति स्वाहा। प्रत्येकार्घ्याणि (चाल मणुयणानंद की ) स्वर्ग जग है अथिर घ्रौव्य नहिं मानिये। तात माता तिया भ्रात सुत जानिये।। चक्रवर्ती तने भोग क्षय जायजी | धर्म आकिंचना पूजि भक्ति भायजी ॥1॥ ऊँ ह्रीं श्री अनित्यरूपोत्तम-आकिंचन्यधर्मांगाय अयं निर्वपामीति स्वाहा। आयु पूरन भये शर्ण नहिं कोंय जी। औषधी मन्त्र बल तन्त्र बहु होयजी॥ देव खग शर्न नहिं मर्न दिन आयजी । धर्म आकिंचना पूजि भक्ति भायजी॥2॥ ऊँ ह्रीं श्री अशरणरूपोत्तमाकिंचन्य-धर्मांगाय अध्यं निर्वपामीति स्वाहा। अन्यतैं प्रीति संसार सो है सही। या थकी राग अरू द्वेष उपजै मही ॥ रागरूख चारि गति मांहिं दुःखदायजी। धर्म आकिंचना पूजि भक्ति भायजी॥3॥ ऊँ ह्रीं श्री संसाररूपोत्तमाकिंचन्य-धर्मांगाय अयं निर्वपामीति स्वाहा। 641
SR No.009254
Book TitleVidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZZZ Unknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1409
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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