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________________ महा सर्वत्तो भद्र बडो तप दिन दोसै पौंताली। इकसौ छिनवै वास कहे जिन पारण गिन नव चाली।। ताकी विधि जिन शासन में लखि, विधिजुत करता भाई। यह अनशन तप जानि जजौं मैं, अर्घ लेय हितदाई।। ऊँ ह्रीं महासर्वतोभद्र तपोधर्मांगाय अध्यं निर्वपामीति स्वाहा।।6।। लघु निष्क्रीडित के दिन जिन धुनि बीसी चारि कहे हैं। तिन में बीस जु कहे पारणा साठि उपास लहे हैं।। करने की विधि जिन धुनि में लखि ताको करिये भाई। यह तप अनशन जानि जजौं मैं अर्घ आनि सुखदाई।। ऊँ ह्रीं लघनिष्क्रीडित तपोधर्मांगाय अयं निर्वपामीति स्वाहा।।7॥ (बेसरी छन्द) नव पारण उपवास पचीसा दिन चौंतीसा कहे जगदीशा। मुक्तावलितप विधि जिन गाई, यह अनशन तप जजि सुखदा।। ऊँ ह्रीं मुक्तावली तपोधर्मांगाय अध्यं निर्वपामीति स्वाहा।।8। मास मास के छह उपवासा, एक वरष दुइ सत्तरि खासा। यह कनकावलि विधिश्रुति गाई, यह तप अनशन जजिसुखदाई।। ऊँ ह्रीं कनकावलि-तपोधर्मांगाय अध्यं निर्वपामीति स्वाहा।।9। सो अनशन पारन उनईसा, इकसौ उनइस दिन शुभ दीसा। जिन भाषित आचामल भाई, यह अनशन तप जजि सुखदाई।। ऊँ ह्रीं आचाम्ल-तपोधर्मांगाय अध्यं निर्वपामीति स्वाहा॥10॥ 630
SR No.009254
Book TitleVidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZZZ Unknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1409
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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