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________________ कामदेव के समान पुत्र रूप धारजी। विनयवान सर्व बलवन्त तेज सारजी।। जानि सब अथिर उरभाव निर्मल करै। पूजि शौच धर्म को जु शौच थानक धरै।।14।। ऊँ ह्रीं श्री भोगवांछाविहीन-शौचधर्मांगायाध्यं निर्वपामीति स्वाहा। भ्रात बहु विनय जुत आनि-पालक सही। संग तिन भोग भोगी जीव साता लही।। जानि सब अथिर उर भाव निर्मल करै। पूजि शौच धर्म को जु शौच थानक धरै।।15।। ॐ ह्रीं श्री भ्रातृसुखवांछाविहीन-शौचधर्मांगायाध्यं निर्वपामीति स्वाहा। मन्त्र दाता विपति मांहि मित्र सारजी। प्रेम अन्तरंग धारि नित्य रहे लारजी।। जानि सब अथिर उर भाव निर्मल करै। पूजि शौच धर्म को जु शौच थानक धरै।।16॥ ऊँ ह्रीं श्री मित्रानुबन्धवांछाविहीन-शौचधर्मांगायाध्यं निर्वपामीति स्वाहा। मित्र तिय पुत्र सब घरतने दासिया। आदि परिजन सकल और घरवासिया।। जानि सब अथिर उरभाव निर्मल करै। पूजि शौच धर्म को जु शौच थानक धरै।।17॥ ऊँ ह्रीं श्री सकलपरिवाजनानुकारित्ववांछाविहीन-शौचधर्मांगायाध्यं निर्वपामीति स्वाहा। जयमाला शौच सकल उर सुख करें, हरै लोभ मद सोइ। मोक्ष धरै मरनो टरै, ताहि जज शिव होई।। शौच भावते पुण्य बड़ोई, कटै पाप जगमें जस होई। शौच भावसतनको प्यारा, जजौं शौच यह धर्म हमारा।। शौच भाव परचाह निवारे, शौच भाव दुख शोक विड़ारे। शौच सरवको बड़ा सहारा, जजौं शौच यह धर्म हमारा।। शौच सांच के बड़ा सनेहा, शौच मुनि व्रत की इकदेहा। शौच भाव मंगल करतारा, जजौं शौच यह धर्म हमारा।। 619
SR No.009254
Book TitleVidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZZZ Unknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1409
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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