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________________ दूरहितै मुनि गुण जु चितारै, मनवचकाया निज वश धारें। तिनपद सरल भाव शिर नावै, सो आर्जव वृष जजि शिवधावें।। ऊँ ह्रीं श्री साधुपदपरोक्षनमनार्जवधर्मांगाय अध्यं निर्वपामीति स्वाहा।।10॥ वरन विहीन सु जिनवर वानी, तिनको सुनि सुख पावै प्रानी। तिनपद सरल भाव शिर नावै, सो आर्जव वृष जजि शिवधावें।। ॐ ह्रीं श्री जिनमुनिनमनार्जवधर्मांगाय अध्यं निर्वपामीति स्वाहा॥11॥ अतिशय क्षेत्र सु तीरथठामा, यात्री गण है कै पूरै कामा। तिसथल सरल भाव शिर नावै, सो आर्जव वृष जजि शिवधावें।। ऊँ ह्रीं श्री अतिशयक्षेत्रपद नमनार्जवधर्मांगाय अध्यं निर्वपामीति स्वाहा॥12॥ शिखर सम्मेद आदि सिद्ध थाना, तहँ मुनि लिय शिवकर्म नशाना। तिनपद सरल भाव शिर नावै, सो आर्जव वृष जजि शिवधावै।। ऊँ ह्रीं श्री सिद्धपदक्षेत्रनमनार्जवधर्मांगाय अध्यं निर्वपामीति स्वाहा॥13॥ विगर किये जिनबिंब अनूपा, लक्षण चिन्ह जानि जिन रूपा। तिनपद सरल भाव शिर नावै, सो आर्जव वृष जजि शिवधावै।। ऊँ ह्रीं श्री अकृत्रिमजिनचैत्यपदनमनार्जवधर्मांगाय अध्यं निर्वपामीति स्वाहा।।14। कृत्रिम जे जिनबिंब बिराजे, विनय सहित पुनदायक छाजै। तिनपद सरल भाव शिर नावै, सो आर्जव वृष जजि शिवधावें।। ऊँ ह्रीं श्री कृत्रिमजिनचैत्यपदनमनार्जवधर्मांगाय अध्यं निर्वपामीति स्वाहा।।15। 606
SR No.009254
Book TitleVidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZZZ Unknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1409
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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