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________________ काश्मीर चंदनकेलि नंदन, घसत परिमल दिगमहै। अलिगुंज करत दिगंतराले, पूजतें भवतप जहैं।। इन्द्र चन्द्र नरेन्द्र पूजित, अखय निधि दायक सदा। अक्षय महानस रिद्धिधर मुनि, पूजि हूँ मैं सर्वदा।।2।। ऊँ ह्रीं अक्षीण महानसरिद्धिधर सर्वमुनीश्वरेभ्यः चन्दनम् निर्वपामीति स्वाहा। सित असित चन्द्रमरीचिका सम, अति सुगन्ध सुपावना। भरिथाल कणमय अखय पद कूँ चरनकमल चढ़ावना।। इन्द्र चन्द्र नरेन्द्र पूजित, अखय-निधिदायक सदा। अक्षय महानस रिद्धिधर मुनि, पूजि हूँ मैं सर्वदा।।3।। ॐ ह्रीं अक्षीण महानसरिद्धिधर सर्वमुनीश्वरेभ्यो अक्षतम् निर्वपामीति स्वाहा। __ पंचवरन प्रसूत सुन्दर, गंध तैं मधुकर भ्रमैं। सो लेय मुनिपद कूँ चहोड़े समर कूँ छिन मैं द4।। इन्द्र चन्द्र नरेन्द्र पूजित, अखय निधि-दायक सदा। अक्षय महानस रिद्धिधर मुनि, पूजि हूँ मैं सर्वदा।।4।। ऊँ ह्रीं अक्षीण महानस रिद्धिधर सर्वमुनीश्वरेभ्यो पुष्पम् निर्वपामीति स्वाहा। घेवर सु बाबर मोहकादिक कनक थाल भराइये। चरु सद्यते मुनि चरण पूजे, क्षुधा रोग नसाइये।। इन्द्र चन्द्र नरेन्द्र पूजित, अखय निधि-दायक सदा। अक्षय महानस रिद्धिधर मुनि, पूजि हूँ मैं सर्वदा।।5।। ऊँ ह्रीं अक्षीण महानस रिद्धिधर सर्वमुनीश्वरेभ्यो नैवेद्यम् निर्वपामीति स्वाहा। 577
SR No.009254
Book TitleVidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZZZ Unknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1409
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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