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________________ ( चाल बीजा की) जय सर्वौषधिरिद्धि के धारी मुनिराय । मन वच वंदू जी, मैं तो सीस नवाय रिषिवरजी ।। 1। नगन दिगम्बर हो परमपवित्र है चित अति अम्लान। करुणा-सागर हो दया-निधान रिषिवरजी।।2। दरस करत ही वाय पित्त कफ खाँसरु साँस। ज्वर शीतादिक हो दाह हुल्लास रिषिवरजी कुष्ट उदंबर हो काल ज्वर अर सब सनिपात। साध्य असाध्यज हो सब रोग नसात रिषिवरजी । 31 पंगु पुरुष कै जी चरण है गिरशिखर चढ़ । जनम अंध कूँ जी सब सूझंत रिषिवरजी ॥ गूंगा बोलत है हो वचन शुभ मुनिवर परताप । सब जीवन को होवै जी सुंदर गात रिषिवरजी॥4॥ सिंह व्याघ्र उन्मत्त गज सब मिटि जाय। तुम पद ध्यावै जी जो लव ल्याय रिषिवरजी ।। कृष्णसर्प तुम नामतैं लट सम है जाय। श्वान स्यालअरु वृश्चिक को विषन रहाय रिषिवरजी ॥5॥ डायण सायण हो योगिनी ये दूरि भग जाय। भूत प्रेत गृह दुष्ट जु हो तुरत नसाय रिषिवरजी।। तुम नाम मंत्र तैं हो अगनिहुल जलसम है जाय। सिंघ भयानक जी थल सम थाय रिषिवरजी ॥6॥ हृदय कमल में जी तुम नाम को जो ध्यान कराय। नृपभय ताकै जी है कछु नांहि रिषिवरजी ॥ विघन अनेकज जी नास है शुभ मंगलथाय । जो नर ध्यावै जी मन वच काय रिषिवरजी ॥7॥ सर्वौषधरिद्धि धार जी जहाँ करत विहार । 569
SR No.009254
Book TitleVidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZZZ Unknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1409
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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