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________________ शितशालि अखंडित सौरभ मंडित चंदकिरण सी अनियारी। भूपन 1 मोसर हम इह ओसर पुंज करें शिवपद कारी।। तपरिद्धि के स्वामी शिवपद गामी शांति करामी तुम ध्यावै। करि विघन विनासं मंगलभासं हरिभवत्रासं गुणगावें।।3।। ऊँ ह्रीं तपोऽतिशय रिद्धिधारक सर्वशांतिकर सर्वमुनीश्वरेभ्यो अक्षतम् निर्वपामीति स्वाहा। गुंजत बहुभृगं पुष्पसुगंधं कल्पवृक्ष के शुभ ल्यायो। हरिबाणमनोजं पद अंभोज पूजन कारन मैं आयो।। तपरिद्धि के स्वामी शिवपद गामी शांति करामी तुम ध्यावै। करि विघन विनासं मंगलभासं हरिभवत्रासं गुणगावै।।4।। ॐ ह्रीं तपोऽतिशय रिद्धिधारक सर्वशांतिकर सर्वमुनीश्वरेभ्यो पुष्पम् निर्वपामीति स्वाहा। घेवर बावर फेणी मोदक चंद्रिक सुवरनन थाल भरे। रसना के रंजन रस के पूरे पूजत रोग सूधादि हरे।। तपरिद्धि के स्वामी शिवपद गामी शांति करामी तुम ध्यावै। करि विघन विनासं मंगलभासं हरिभवत्रासं गुणगावै।।5।। ॐ ह्रीं तपोऽतिशय रिद्धिधारक सर्वशांतिकर सर्वमुनीश्वरेभ्यो नैवेद्यम् निर्वपामीति स्वाहा। कनकरकाबी मैं मणिदीपक ललित ज्योतिकर अतिप्यारे। मोह तिमिर विध्वंसन कारन चरन कमल परि हम वारे।। तपरिद्धि के स्वामी शिवपद गामी शांति करामी तुम ध्यावै। करि विघन विनासं मंगलभासं हरिभवत्रासं गुणगावें।।6।। ऊँ ह्रीं तपोऽतिशय रिद्धिधारक सर्वशांतिकर सर्वमुनीश्वरेभ्यो दीपम् निर्वपामीति स्वाहा। 552
SR No.009254
Book TitleVidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZZZ Unknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1409
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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