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________________ सिंहसेनादि सब नवति गणधार हैं। अजित जिनराज के लक्ष अणगार हैं।। नीर गंधाक्षतं पुष्प चरु दीपकं। धूप फल अर्घ लेय हम यजै महर्षिकं।।2। ऊँ ह्रीं श्री अजित जिनस्य सिंहसेनादि नवतिगणधर लक्षक सर्वमुनीश्वरेभ्यः अर्घ निर्वपामीति स्वाहा। चारुषेणादि शत एक अरु पाँच हैं। लक्ष सब दोय संभवतणे सांच हैं।। नीर गंधाक्षतं पुष्प चरु दीपकं। धूप फल अर्घ लेय हम यजै महर्षिक।।3।। ऊँ ह्रीं श्री संभव जिनस्य चारुषेणादि पंचाधिकशतगणधर लक्षद्वय सर्व मुनीश्वरेभ्यः अर्घ निर्वपामीति स्वाहा। एक सौ तीनवज्रादि हैं गणधरा। सर्व अभिनंदन के तीन लख मुनिवरा।। नीर गंधाक्षतं पुष्प चरु दीपकं। धूप फल अर्घ लेय हम यजै महर्षिकं।।4।। ऊँ ह्रीं श्री अभिनंदन जिनस्य वज्रनाभिआदि त्रयाधिकशत गणधर लक्षत्रय सर्व मुनीश्वरेभ्यः अर्घ निर्वपामीति स्वाहा। अमरादि एकशत षोडश गणधरा। सुमति यति चउगणा सहस्त्र अस्सी परा।। नीर गंधाक्षतं पुष्प चरु दीपकं। धूप फल अर्घ लेय हम यजै महर्षिक।।5।। ऊँ ह्रीं श्री सुमति जिनस्य अमरादि षोडशाधिकशत गणधर लक्षत्रयविंशति सहस्त्र सर्व मुनीश्वरेभ्यः अर्घ निर्वपामीति स्वाहा। वज्रादिशत एकदश पद्म गणधरा तीन लख तीस हजार सर्व मुनीवरा।। नीर गंधाक्षतं पुष्प चरु दीपकं। धूप फल अर्घ लेय हम यजै महर्षिकं।।6।। ॐ ह्रीं श्री पद्म जिनस्य वज्रचामरादि दशाधिक एक शत गणधर लक्षत्रयाधिक त्रिंशत् सहस्त्र सर्व मुनीश्वरेभ्यः अर्घ निर्वपामीति स्वाहा। 524
SR No.009254
Book TitleVidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZZZ Unknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1409
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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