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________________ ऊँ ह्रीं श्री ऋषभादिमहावीरपर्यंत चतुर्विंशतितीर्थंकरेभ्यः मोक्षकल्याणक प्राप्तेभ्यः अत्र अवतर अवतर सम्वौषट् आह्वाननम्। ऊँ ह्रीं श्री ऋषभादिमहावीरपर्यंत चतुर्विंशतितीर्थंकरेभ्यः मोक्षकल्याणक प्राप्तेभ्यः प्राप्ताः अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः स्थापनम्। ऊँ ह्रीं श्री ऋषभादिमहावीरपर्यंत चतुर्विंशतितीर्थंकरेभ्यः मोक्षकल्याणक प्राप्तेभ्यः प्राप्ताः अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् सन्निधिकरणम्। (वसन्ततिलका) पानी महान भरि शीतल शुद्ध लाऊँ । जन्मादि रोग हर कारण भाव ध्याऊँ।। पूजूँ सदा चतुर्विंशति सिद्ध कालं। पाऊं महान शिवमंगल नाश कालं। ऊँ ह्रीं श्री ऋषभादिमहावीरपर्यंत चतुर्विंशति जिनेन्द्रेभ्यः नमः जलं निर्वपामीति स्वाहा।। केशर सुमिश्रित सुगन्धित चन्दनादी। आताप सर्व भव नाशन मोह आदी। पूजूँ सदा चतुर्विंशति सिद्ध कालं । पाऊं महान शिवमंगल नाश कालं ।। ऊँ ह्रीं श्री ऋषभादिमहावीरपर्यंत चतुर्विंशति जिनेन्द्रेभ्यः नमः चंदनं निर्वपामीति स्वाहा।। चन्दा समान बहु अक्षत धार थाली । अक्षय स्वभाव पाऊ गुण रत्नशाली। पूजूँ सदा चतुर्विंशति सिद्ध कालं। पाऊं महान शिवमंगल नाश कालं। ऊँ ह्रीं श्री ऋषभादिमहावीरपर्यंत चतुर्विंशति जिनेन्द्रेभ्यः नमः अक्षतं निर्वपामीति स्वाहा।। चम्पा गुलाब मरुवा बहु पुष्प लाऊँ। दुख टार काम हरके निज भावपाऊँ।। पूजूँ सदा चतुर्विंशति सिद्ध कालं । पाऊं महान शिवमंगल नाश कालं ।। ऊँ ह्रीं श्री ऋषभादिमहावीरपर्यंत चतुर्विंशति जिनेन्द्रेभ्यः नमः पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा।। ताजे महान पकवान बनाय धारें। बाधा मिटाय क्षुध रोग स्वयं सम्हारे। पूजूँ सदा चतुर्विंशति सिद्ध कालं । पाऊं महान शिवमंगल नाश कालं। 507
SR No.009254
Book TitleVidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZZZ Unknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1409
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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