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________________ वैसाख वदि दशमी की, मुनिसुव्रत धारा व्रतको। समता रसमें लौ लाए, हम पूजत ही सुख पाए।। ऊँ ह्रीं वैसाखकृष्णदशम्यां श्रीमुनिसुव्रतजिनेन्द्राय तपकल्याणकप्राप्ताय अयं निर्वपामीति स्वाहा।।200 दशमी आषाढ़ वदी की, नमिनाथ हुए एकाकी। वन में निज आतम ध्याये, हम पूजत ही सुख पाये।। ॐ ह्रीं आषाढ़कृष्णादशम्यां श्रीनमिनाथजिनेन्द्राय तपकल्याणकप्राप्ताय अयं निर्वपामीति स्वाहा॥21॥ छठि श्रावण शुक्ला आई, श्री नेमिनाथ बन जाई। __करुणा धर पशु छुडाए, धारा तप पूजूं ध्याए। ऊँ ह्रीं श्रावणशुक्ला षष्ठयां श्रीनेमिनाथजिनेन्द्राय तपकल्याणकप्राप्ताय अयं निर्वपामीति स्वाहा॥22॥ लखि पौष इकादशि श्यामा, श्रीपार्शवनाथ गुणधामा। तप ले वन आसन ठाना, हम पूजत शिवपद पाना।। ॐ ह्रीं पौषकृष्णाचतुर्दश्यां श्रीपार्शवनाथजिनेन्द्राय तपकल्याणकप्राप्ताय अध्यं निर्वपामीति स्वाहा।।23॥ अगहन वदि दशमी गाई, बारा भवन शुभ भाई। श्री वर्द्धमान तप धारा, हम पूजत हों भव पारा।। ऊँ ह्रीं अगहनकृष्णादशम्यां श्रीवर्द्धमानजिनेन्द्राय तपकल्याणकप्राप्ताय अध्यं निर्वपामीति स्वाहा।।241 494
SR No.009254
Book TitleVidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZZZ Unknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1409
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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