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________________ नौमी वैसाख सुदी में, तप धारा जाकर बनमें श्री सुमतिनाथ मुनिराई, पूनँ मैं ध्यान लगाई।। ॐ ह्रीं वैशाखशुक्लानवाम्यां श्रीसुमतिनाथजिनेन्द्राय तपकल्याणकप्राप्ताय अयं निर्वपामीति स्वाहा।।5॥ कातिक वदि तेरसि गाई, पद्मप्रभु समता भाई। वन जाय घोर तप कीना, पूजें हम सम सुख भीना।। ॐ ह्रीं कार्तिककृष्णात्रयोदश्यां श्रीपद्मप्रभुजिनेन्द्राय तपकल्याणकप्राप्ताय अध्यं निर्वपामीति स्वाहा॥6॥ सुदि द्वादश जेठ सुहाई, बारा भावन प्रभु भाई। तप लीना केश उपाड़े, पूजू सुपाश्व यति ठाड़े।। ॐ ह्रीं ज्येष्ठशुक्लाद्वादश्यां श्रीसुपाश्वजिनेन्द्राय तपकल्याणकप्राप्ताय अयं निर्वपामीति स्वाहा।।7॥ एकादश पौष वदी को, चन्द्रप्रभु धारा तप को। वन में जिन ध्यान लगाया, हम पूजत ही सुख पाया।। ऊँ ह्रीं पौषकृष्णाएकादश्यां श्रीचन्द्रप्रभजिनेन्द्राय तपकल्याणकप्राप्ताय अध्यं निर्वपामीति स्वाहा।।8। अगहन सुदि एकम जाना, श्रीपुष्पदंत भगवाना। तप धार ध्यान निज कीना, पूजूं आतम गुण चीन्हा।। ॐ ह्रीं अगहनशुक्लाएकं श्रीपुष्पदन्तजिनेन्द्राय तपकल्याणकप्राप्ताय अध्यं निर्वपामीति स्वाहा।।91 491
SR No.009254
Book TitleVidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZZZ Unknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1409
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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