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________________ गर्भ कल्याण में पूजते आपको, हो सफल यज्ञ यह छोड सन्ताप को।।5।। (धत्ता त्रिभंगी) जय मंगलकारी मात हमारी बाधाहारी कर्म हरो, तुम गुण शुचिधारी हो अबिकारी, समदम यम निज मांहिधरो। हम पूजूं ध्यावें मंगल पावें शक्ति बढ़ावें वृष पाके, जिन यज्ञ मनोहर शांति सुधाकर, सफल करें तब गुण गाके।। ॐ ह्रीं चतुर्विंशतितीर्थंकरागर्भकल्याणकप्राप्ताः अध्यं निर्वपामीति स्वाहा।। जन्म कल्याणक पूजन जिननाथ चौवि स चरण पूजा करत हम उमगाय, जग जन्म लेके जग उधारो जज हम चित लाय। तिन जन्म कल्याणक सु उत्सव इन्द्र आय सुकीन, हम हूँ सुमर ता समय को पूजत हिये शुचिकीन।। ॐ ह्री ऋषभादिमहावीरपर्यंतचतुर्विंशतितीर्थंकराः जन्मकल्याणक प्राप्ताः अत्र अवतर अवतर संवौष्ट्र आह्वाननम्। ऊँ ह्री ऋषभादिमहावीरपर्यंतचतुर्विंशतितीर्थंकराः जन्मकल्याणक प्राप्ताः अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः स्थापनम्। ऊँ ह्री ऋषभादिमहावीरपर्यंतचतुर्विंशतितीर्थंकराः जन्मकल्याणक प्राप्ताः अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् सन्निधिकरणम्। जल निर्मल धार कटोरी, पूजूं जिन निज कर जोड़ी। पद पूजन करहूं बनाई, जासे भव जल तर जाई।। ॐ ह्रीं ऋषभादिमहावीरपर्यंतचतुर्विंशतितीर्थंकरेभ्यः जन्मकल्याणक प्राप्तेभ्यः जन्मजरामृत्यु विनाशनाय जलं निर्वपामीति स्वाहा। 480
SR No.009254
Book TitleVidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZZZ Unknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1409
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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