SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 46
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सिंहासने मणि-मयूख-शिखा-विचित्रे विभ्राजते तव वपु कनकावदातम्। बिम्बं वियद्विलसदंशुलता-वितानं तुङ्गोदयाद्रिशिरसीव सहस्र-रश्मेः।।29।। ओं ह्रीं मणिमुक्ता-खचित-सिंहासन-प्रातिहार्य-युक्ताय क्लीं महाबीजाक्षर सहिताय हृदयस्थिताय श्री वृषभजिनेन्द्राय अध्यं निर्वपामीति स्वाहा।।29॥ कुन्दावदात-चल-चामर-चारु-शोभं विभ्राजते तव वपुः कलधौत-कान्तम्। उद्यच्छशाङ्क-शुचि-निर्झर-वारि-धार- मुच्चैस्तटं सुरगिरेरिव शातकौम्भम्।।30॥ ओं ह्रीं चतुःषष्टि-चामर-प्रातिहार्ययुक्ताय क्लीं महाबीजाक्षर सहिताय हृदयस्थिताय श्री वृषभजिनेन्द्राय अयं निर्वपामीति स्वाहा।।300 छत्र-त्रयं तव विभाति शशाङ्क-कान्त-मुच्चै स्थितं स्थगित-भानु-कर-प्रतापम्। मुक्ता-फल-प्रकर-जाल-विवृद्धशोभं प्रख्यापयत्रि जगतः परमेश्वरत्वम्।।31॥ ओं ह्रीं क्षत्रत्रय प्रातिहार्य-युक्ताय क्लीं महाबीजाक्षर सहिताय हृदयस्थिताय श्री वृषभजिनेन्द्राय अध्यं निर्वपामीति स्वाहा।।31॥ गम्भीर-तार-रव-पूरित-दिग्विभाग- त्रैलोक्य-लोक-शुभ-सङ्गम-भूति-दक्षः। सद्धर्मराज-जय-घोषण-घोषकः सन् खे दुन्दुभिर्ध्वनति ते यशसः प्रवादी॥32॥ ओं ह्रीं त्रैलोक्याज्ञाविधायिने क्लीं महाबीजाक्षर सहिताय हृदयस्थिताय श्री वृषभजिनेन्द्राय अयं निर्वपामीति स्वाहा।।32॥ मन्दार-सुन्दर-नमेरु-सुपारिजात-सन्तानकादि-कुसुमोत्कर-वृष्टि-रुद्धा। गन्धोद-बिन्दु-शुभ-मन्द-मरुत्प्रपाता दिव्या दिवः पतति ते वचसां ततिर्वा।।33॥ ओं ही समस्त-पुष्पांजलि-वृष्टि-प्रातिहार्याय क्लीं महाबीजाक्षर सहिताय हृदयस्थिताय श्री वृषभजिनेन्द्राय अयं निर्वपामीति स्वाहा।।33॥ 46
SR No.009254
Book TitleVidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZZZ Unknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1409
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy