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________________ व्रत सुशील क्रिया गुण श्रावका, पद सु लक्ष इग्यारह धारका। सहस सप्तति और मिलाइये, जजू पाठक ज्ञान बढाइये।। ऊँ ह्रीं एकादशलक्षसप्ततिसहस्रपदशोभितोपासकाध्ययनांगधारकोपाध्याय परमेष्ठिने अध्यं निर्वपामीति स्वाहा।।1520 दश यती उपसर्ग सहन करे, सयम तीर्थंकर शिवतिय वरे। सहस अठाइस लख तेइसा, पद यजूं पाठक जिन सारिसा।। ऊँ ह्रीं त्रिविंशतिलक्षआठविंशतिसहस्रदशोभितांत दशांगधारकोपाध्याय परमेष्ठिने अध्यं निर्वपामीति स्वाहा॥1530 दश यती उपसर्ग सहन करे, समय तीर्थ अनुत्तर अवतरे। सहस चव चालिस लख बानवे, पद धरे पाठक बहुज्ञान दे।। ॐ ह्रीं द्विनवतिलक्षचतुर्चत्वारिंशत्पदशोभितानुतरोपापादिकांगधारकोपाध्याय परमेष्ठिने अध्यं निर्वपामीति स्वाहा।।1540 प्रश्न व्याकरणांग महान ये, सहस सोलह लाख तिरानवे। पद धरे सुख दुःख विचारता, जजू पाठक धर्म प्रचारता।। ऊँ ह्रीं त्रिनवतिलक्षषोडशसहस्रपदशोभितप्रश्नव्याकरणांगधारकोपाध्याय परमेष्ठिने अध्यं निर्वपामीति स्वाहा।।155॥ सहस चबरसि कोटी एक पद, धरत सूत्रविपाक सुजान प्रद। करम-बन्ध उदय सत्त्वादि कथ, जजू पाठक जीते कामरथ।। ऊँ ह्रीं एककोटिचतुरशीतिसहस्रपदशोभितविपाकसूत्रांगधारकोपाध्याय परमेष्ठिने अध्यं निर्वपामीति स्वाहा।।156॥ 455
SR No.009254
Book TitleVidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZZZ Unknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1409
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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