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________________ पूज्य आत्म गुणधर मलहार, विमलनाथ जग परम उदार । शील परम पावन के काज, पूजूं अर्घ लेय जिनराज।। ॐ ह्रीं विमलजिनाय अघ्यं निर्वपामीति स्वाहा।। 87॥ दिव्यवाद अर्हन्त अपार, दिव्यध्वनि प्रगटावन हार । आत्मतत्व ज्ञाता सिरताज, पूजूं अर्घ लेय जिनराज ।। ऊँ ह्रीं दिव्यवादजिनाय अध्यं निर्वपामीति स्वाहा॥88॥ शक्ति अपार आत्म धरतार, प्रगट करें जिनयोग सम्हार । वीर्य अनंतनाथ को ध्याय, नतमस्तक पूजूं हरषाय।। ॐ ह्रीं अनन्तवीर्यजिनाय अघ्यं निर्वपामीति स्वाहा॥89॥ तीर्थराज चौबीस जिन, भावी भव हरतार। बिम्ब प्रतिष्ठा कार्य में, पूजूं विघ्न निवार।। ऊँ ह्रीं बिम्बप्रतिष्ठाद्यापने मुख्यपूजाअर्हचतुर्थवलयोन्मुद्रितानागत चतुर्विंशांतिमहापद्मानंतवीर्यातेभ्यो जिनेभ्यः पूर्णाध्यं निर्वपामीति स्वाहा। पंचम वलय में विदेह क्षेत्र के 20 तीर्थंकरों की पूजा (छंद सृग्विणी) मोक्षनगरी पतिं हंस राजा सुतं, पुण्डरीका पुरी राजते दुखहतम्। श्रीमन्धर जिना पूजते दुखहना, फेर होवे न या जगत में आवना ।। ऊँ ह्रीं सीमन्धरजिनाय अघ्यं निर्वपामीति स्वाहा।। 90॥ 443
SR No.009254
Book TitleVidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZZZ Unknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1409
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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