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________________ जय गणधर यतिपति सेव्यपाद जय, जय शारद नीरद दिव्यनाद जय।।5।। जय पापतिमिर हर पूर्णचन्द्र जय, जय दोष निवारक नाभितनुज जय। जय प्रथम तीर्थंकर प्रथमदेव जय, जय प्रथम पुरुष प्रविनष्टक्रोध जय।।6।। घत्ता पुरुजिनसारं, दर्शनसारं, सारं केवलबोधमयम्। वन्दतभवतारं, रहितविमारं शान्तिदास ब्रह्मकृतसुदम्।। ऊ: नमोऽर्हते भगवते देवाधिदेव यन्त्रमन्त्रसिद्धिकराय ह्रीं ह्रीं द्रीं द्रीं क्रों क्रों ऊँ ऊँ झौं वं पः हं हं झं झ्वीं क्ष्वी हं सः अ सि आ उ सा...........नामधेयस्य...........सर्वशांतिं कुरू-कुरू। तुष्टि कुरू-कुरू। सिद्धि कुरू-कुरू। वृद्धिं कुरू-कुरू। समस्तक्षामडामरभयविनाशनं कुरू-कुरू सर्वशान्तिकराय रक्षापमृत्युञ्जयाय अध्यं निर्वपामीति स्वाहा। सम्यग्धीरगुणैरनन्तगुणितै-युक्ताः सुमायाधवाः, ये सिद्धा मलनाशका वसुगुण काव्योद्भवैः सप्तभिः। सार्धं श्रीविजयादिभिः सुखकरैः सेव्यैस्तरां निर्मला, जाताः श्री गजपन्तके च गुरवः कुर्वन्तु ते मङ्गलम्।। इत्याशीर्वाद अथ आनन्द स्तवन जय जय जिनराज ध्वस्तदुर्मोहराज, प्रहतमदनराज प्रह्वतद्देवराज। रुचिरतरविराज स्तुत्यशक्ताहिराज, प्रचूरसुगुणराजन्नच्युताधीशराज।।1। जय जय जिनधीर, प्राप्तजन्माब्धिपार, प्रभि तविभवसार प्रौढ़ तीर्थावतार। प्रहतहतकमार पोद्गतानन्दपूर, प्रहसितशतसूर प्रप्रकृष्टां शुभार।।2।। जय जय जिनमित्र ध्वान्तविध्वंस मित्र, स्वतिशयगुणगात्र ज्ञानविस्फूर्तिपात्र। 421
SR No.009254
Book TitleVidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZZZ Unknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1409
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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